ज्योतिषाचार्य डॉक्टर मंजू जोशी ने बताया कि बुधवार 17 जुलाई को तुलसी रोपण व देव शयनी एकादशी का उपवास रखा जाएगा तथा देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास प्रारंभ होगा। हिंदू धर्म में चातुरमास का विशेष महत्व है आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं। चार माह तक प्रकृति का संचालन भगवान भोलेनाथ करते हैं। चातुर्मास में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवप्रबोधनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं। और सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारम्भ हो जाते है। देवशयनी एकादशी को तुलसी पौध रोपण भी किया जाता है और देवी तुलसी की पूजा अर्चना की जाती है।आगे पढ़ें पूरी कहानी…….
राजा बलि को दिया वरदान।वामन पुराण के अनुसार असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया। और राजा बलि में अहंकार भर गया। राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्रदेव और अन्य देवता घबराकर भगवान विष्णु की शरण में गए और उनसे मदद करने की प्रार्थना की। देवताओं की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। क्योंकि राजा बलि खुद को महादानी व सत्यवादी मानते थे वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। पहले पग में पृथ्वी व दूसरे पग में आकाश नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं था तो राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा प्रभु तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें। भगवान वामन ने ऐसा ही किया। इस तरह देवताओं की चिंता खत्म हो गई और वहीं विष्णु भगवान, राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया। बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान विष्णु पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के पाताल जाने के उपरांत सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए। अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी। बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया। पाताल से विदा लेते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे। पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को ही चातुर मास कहा जाता है। विशेष आभार ज्योतिषाचार्य डॉक्टर मंजू जोशी