नैनीताल। जलवायु परिवर्तन का असर अब मौसम के साथ साथ ऋतुओ में भी दिखाई देने लगा है। इस बार बर्फवारी व बारिश बिल्कुल गायब रही तो वही वनाग्नि के चलते जंगलो मे पाए जाने वाला औषधिय गुणकारी काफल भी गायब हो चुका है।जिससे काफल के दाम भी आसमान छूने लगे है।दो सौ रुपये किलो बिकने वाला काफल इस बार 500 तक पहूंच गया है।विजेंद्र लाल साह ऒर मोहन लाल उप्रेती द्वारा लिखित प्रदेश का हस्ताक्षर गीत “बेडु पाको बारोमासा..ओ नरेण काफल पाको चैता गीत” का मतलब होता था कि उत्तराखंड के जंगलों में पाया जाने वाला गुणकारी फल बेडु बारह महीने पकता है जबकि काफल चैत (अप्रैल) के माह में पकता है लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते काफल भी अब जल्दी पकने लगा है।हालांकि इस बार वनाग्नि के चलते जंगलो में काफल की पैदावर भी काफी कम हुई है।आगे पढ़ें…..
मौसम के जानकारों का कहना है कि वाहनों की अत्यधिक वृद्धि से कार्बनिक कणों की मात्रा पर्वतीय क्षेत्रियों में बढ़ गई है। जिस कारण एक ओर दिन के तपमान में तेजी से वृद्धि हो रही है तो रात के तापमान में उतनी ही तेजी से गिरावट आ रही है। जिस कारण तापमान काफी हद तक अनियंत्रित हो चुका है। वहीं सूर्य की रोशनी पड़ती है तो गर्मी का आभास बढ़ जाता है,और तापमान बढ़ जाता है,और जब बादल छाते हैं तो कार्बनिक कण ठंडे हो जाते हैं जिसके चलते तापमान में भी गिरावट आ जाती है।