धर्म-संस्कृति

कन्या पूजन व कलश विसर्जन पर विशेष: ज्योतिषाचार्य डॉ मंजू जोशी

नवरात्र के नौ दिनों तक माता दुर्गा की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना के बाद अब बारी आती है कन्या पूजन और कलश विसर्जन की कई श्रद्धालुओं के मन में कन्या पूजन व कलश विसर्जन की विधि को लेकर शंका रहती है कि सही विधि क्या है आइए जानते हैं कन्या पूजन व कलश विसर्जन की विधि।आगे पढ़े…

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कन्या पूजन विधि सबसे पहले यह स्पष्ट कर दूं अपनी स्वेच्छा व सामर्थानुसार कोई भी श्रद्धालु कन्या पूजन कर सकता है व जिन माता के भक्तों ने पहला नवरात्र और आखिरी नवरात्र का उपवास रखा हो वह भी कन्या पूजन कर सकते हैं इसके अतिरिक्त जिन भक्तों ने अपने घर में  मां की अखंड ज्योत जलाई हो व कलश स्थापना की हो ऐसे सभी जातकों को कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए।आगे पढ़ें….

ऊँ मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।नवदुर्गा आत्मिकां साक्षात् कन्याम् आवाह्यम्।।नवरात्रि की सभी तिथियों को एक-एक कन्या और नवमी को नौ कन्याओं के विधिवत पूजन का विधान है और साथ में एक बालक को बटुक भैरव के रूप मे पूजा जाता है। कुंआरी कन्याएं माता गौरी के समान ही पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रानुसार कन्या पूजन हेतु दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं। एक वर्ष से छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि एक वर्ष से छोटी कन्याएं प्रसाद नहीं खा सकतीं। उन्हें प्रसाद-पूजन आदि का ज्ञान नहीं होता। इसलिए कन्या पूजन हेतु दो वर्ष से दस वर्ष की आयु की कन्याओं का पूजन करना ही श्रेष्ठ माना गया है। नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि के उपरांत सबसे पहले देवी के हेतु भोग तैयार करें। नियमित पूजा पाठ करें व देवी सप्तशती का पाठ करें हवन करें और कन्या पूजन हेतु नौ कन्याओं और एक बालक( लंगूर) को आमंत्रित करें।आगे पढ़ें……

सर्वप्रथम सभी नौ देवियों एवं एक बालक( लागुर) को आसन प्रदान करें और उसमें श्रद्धा पूर्वक बैठाकर कन्याओं के पैर दूध व जल से धोकर  पोंछ लें। सभी के मस्तक पर तिलक लगाएं व घी के दीपक से आरती करें। सभी देवी स्वरूप कन्याओं को श्रद्धा पूर्वक बनाए गए भोजन को ग्रहण करने का आग्रह करें व भोजन प्रस्तुत करें भोजन कराते समय ध्यान रखें कि बालक यानी कि लंगूर को सबसे पहले भोजन शुरू कराएं।( *कन्या पूजन हेतु बिना लहसुन-प्‍याज का सात्विक भोजन बनाएं जैसे पूरी-हलवा, खीर और चने की सब्‍जी, फल ,मिठाई) आदि।और भोजन के बाद आदरसहित उनका हस्त प्रक्षालन कराएं और जाने-अंजाने हुए किसी भी प्रकार के भूल-चूक के लिए क्षमा मांगे।सभी कन्याओं को भेंट स्वरूप अपनी समर्थनुसार दक्षिणा या उपहार भेंट करे। अंत में विदा लेते हुए पैर छूकर निवेदन करें कि आप सदैव हमारे घर में शुभकार्यों में पधारती रहें और मां आपका आशिर्वाद हम भक्तों पर बना रहे।कन्याओं के भोजन के पश्चात आप भी उपवास का पारण कर सकते हैं।आगे पढ़ें….

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कलश विसर्जन। प्रतीदिन की भांति पूजा अर्चना करें, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें ( देवी सूक्तम) मां भगवती से क्षमा याचना करें । इस मंत्र का 21 बार  जाप करें-:या देवि सर्वभूतेषु शांति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:। तत्पश्चात घी के दीपक जलाएं और आरती करें।इसके बाद कलश विसर्जन के लिए कलश को उठाते हुए इस मंत्र जाप करते रहे।ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नारियल को अपने माथे पर लगाए और नारियल-चुनरी को अपनी माता जी या पत्नी के आंचल में डालें। कलश पर बंधे कलावे को अपने हाथ पर बांध सकते हैं और गले में पहन सकते हैं। यह देवी का सिद्ध रक्षाकवच कहलाता है जो कि सभी परेशानियों से रक्षा करता है। कवच सूत्र बांधते हुए जो भी देवी मंत्र याद हो, उसका उच्चारण करते रहे। यह सूत्र घर के सभी सदस्य धारण कर सकते है। कलश लेकर आम के पत्तों से कलश के जल को सर्वप्रथम रसोई घर में छिड़काव करें क्योंकि यहां लक्ष्मी जी का वास होता है। तत्पश्चात बाकी घर में छिड़काव करें अंत में घर के चारों कोनों में छिड़काव करें। ध्यान रखें कलश के जल छिड़काव स्नान ग्रह में न करें। बचे हुए जल को तुलसी के गमले में अर्पण कर दें। जो सिक्का कलश में डाला हो, उसको अपनी तिज़ोरी में रख लें। सुपारी को गमले में डालें। इस तरह नवरात्र व्रत का परायण संपन्न होता है  नवरात्रि में जली हुई अखंड ज्योति को विजयदशमी के पूजन तक प्रज्जवलित रखना चाहिए। क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विजयदशमी को भगवान राम ने अपराजिता देवी का पूजन किया था। माता रानी अपना आशिर्वाद सभी भक्तों पर बनाए रखें। *जै माता दी ज्योतिषाचार्य डॉ मंजू जोशी

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