धर्म-संस्कृति

महाशिवरात्रि पर्व पर बन रहे है खास संयोग:ज्योतिषाचार्य डॉ मंजू जोशी

प्रतिवर्ष फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शिवपुराण में वर्णित है भगवान भोलेनाथ के निष्कल यानि निराकार स्वरूप का प्रतीक लिंग इसी पावन तिथि की महा रात्रि में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था* इसी कारण यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात हो गई। महाशिवरात्रि पर्व देवी पार्वती एवं शिव के विवाह की तिथि के रूप में मनाई जाती है। शिवरात्रि प्रतिमाह मनाई जाती है।आगे पढ़ें क्या है खास संयोग

इस शिवरात्रि पर्व पर कुछ खास संयोग बनने जा रहे हैं– सिद्धि योग, शिव योग एवं देव गुरु बृहस्पति  मेष राशि में विराजमान होंगे एवं सूर्य देव, शुक्र, शनि महाराज कुंभ राशि में विराजमान होकर सभी को आय में वृद्धि प्रदान करेंगे। इसके अतिरिक्त मकर राशि में चंद्रमा और मंगल की युति महालक्ष्मी योग का निर्माण कर रही है। 

मुहूर्त।चतुर्दशी तिथि(शिवरात्रि) 8 मार्च 2024 रात्रि 10 से 9 मार्च 2024 सांयकाल 6:19 तक ( चूंकि शिवरात्रि में रात्रि की पूजा का विधान है इस कारण शिवरात्रि पर्व 8 मार्च 2024 को मनाया जाएगा) शिवरात्रि से ही विदित होता है कि शिवरात्रि में पूजा रात्रि के समय की जाती है तो आपको अवगत करा दें शिवरात्रि की पूजा चार प्रहर में करने का विधान है।पूजा समय।प्रथम प्रहर की पूजा का समय रहेगा सायंकाल 6:14 मिनट से 9:17 तक। दूसरे प्रहर की पूजा का समय रहेगा रात्रि 9:17 से 12:20 तक।तीसरे पहर की पूजा का समय रहेगा रात्रि 12:20 से प्रातः 3:24 मिनट तक।चौथे चरण की पूजा का समय रहेगा प्रातः काल 3:24 से 6:32 तक।महाशिवरात्रि  महानिशाकाल काल पूजा मुहूर्त 8 मार्च 2024 11:55 से 8/9 मार्च 2024  रात्रि 12:44 तक। शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महाशिवरात्रि का पर्व विशेष महत्वपूर्ण है इस रात्रि ग्रह उत्तरी गोलार्ध में इस प्रकार अवस्थित होते है कि मनुष्य के भीतर की उर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है यानी प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है धार्मिक रूप से बात करें तो प्रकृति उस रात मनुष्य को परमात्मा से जोड़ती है इसका पूरा लाभ मनुष्य को मिल सके इसलिए महाशिवरात्रि की रात में जागरण करने व रीढ़ की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठने की बात कही गई है।

To Top

You cannot copy content of this page