देवभूमि उत्तराखंड की धड़कन हैं गांव पहाड़ के गांवों में कृषि,पशुपालन,फलोत्पादन,सब्जी उत्पादन,खेती बाड़ी प्रमुख रूप से जीविकोपार्जन का एक सशक्त माध्यम रहे हैं।आज भले ही सुख सुविधाओं के आभाव में पलायन से गांव खाली हो चुके हों या जंगली जानवरों के आतंक से खेती बाड़ी चौपट हो रही हो या किसानों का मोह भंग हो रहा हो लेकिन फिर भी गाँवों में कृषि उपजाऊ भूमि में धान,मडूवा,गहत,रैस,भट,दलहनी फसलें लहलहाती हुई दिखाई देती हैं।और इसके साथ साथ पशुपालन के लिए घास काटने व इसको संग्रहण करना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।आगे पढ़ें…....
असोज माह सबसे ज्यादा व्यस्ततम महीना माना जाता है।क्योंकि वर्ष के इस माह से खेतों में बहुत ज्यादा काम होता है।हिन्दू महीनों के अनुसार असोज के महीने को आश्विन माह कहा जाता है। हिन्दू धर्म में आश्विन माह को बहुत महत्व दिया गया है।सितंबर आधे माह के बाद से असोज का महीना शुरू होता है,जो नवंबर अंत तक रहता है।असोज में धान,मंडुआ,भट-मास,गहत फसलों की कटाई की जाती है।तो वही इस दौरान जंगलों में हो रही हरी घास को भी काटकर रख दिया जाता है,जिससे साल भर पालतू पशुओ के लिए चारे की व्यवस्था हो सके।जिसके चलते पूरे वर्ष में असोज माह के दौरान लोगो को अक्टूबर आधे माह से नवंबर अंत तक लोगो को कड़ी धूप में सुबह से देर रात तक फुर्सत नही मिलती है।इसलिए असोज के माह में एक कहावत बोली जाती है असोज का काम और असोज का घाम मतलब धूप बहुत कष्टदायी होती है।