

















श्राद्ध कर्म कैसे प्रारंभ हुआ।महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध कर्म की शुरुआत कैसे हुई,प्राचीन समय में सबसे पहले महर्षि निमि को अत्रि मुनि ने श्राद्ध का ज्ञान दिया था तब ऋषि निमि ने श्राद्ध किया और उनके बाद अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध कर्म प्रारम्भ कर दिया। तभी से पूर्वजों के सम्मान व आत्मा के तारण हेतु श्राद्ध कर्म करने की परंपरा प्रचलित हो गई।आगे पढ़ें क्या है तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध……

तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध।सामान्य बोलचाल की भाषा में तर्पण श्राद्ध और पिंडदान आपने सुना होगा इसका अर्थ क्या है,तर्पण का अर्थ है कि हम अपने पित्रों को जल दान कर रहे हैं।पिंडदान का अर्थ है हम पितरों के निमित्त भोजन दान कर रहे हैं।श्राद्ध का अर्थ है हम आपको श्रद्धा से स्मरण करते हैं। श्रद्धया इदं श्राद्धम् (यानी जो श्रद्धा से किया जाए वही श्राद्ध है)तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध का अर्थ यह हुआ हे पितृ देव आप हमारे लिए देव तुल्य हैं। आइए हमारे द्वारा श्रद्धा से बनाए गए भोजन व जल को ग्रहण कीजिए।नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।धार्मिक मान्यतानुसार अपने पूर्वजों के सम्मान व आत्मा के तारण हेतु तर्पण व श्राद्ध किया जाता है। वर्ष की जिस भी तिथी को पूर्वजों का निधन हुआ हो, पितृ पक्ष की उसी तिथि पर उनका श्राद्ध किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा को केवल उन पित्रों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन पूर्णिमा तिथि को हुआ हो।
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