धर्म-संस्कृति

शुक्रवार: संकष्टी चतुर्थी पर्व,जाने क्या है कथा: ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी

17 जनवरी  शुक्रवार को संकट चतुर्थी का उपवास रखा जाएगा। संकट चतुर्थी का उपवास भगवान श्री गणेश को समर्पित है। संकट चतुर्थी का उपवास रखने से व्यक्ति के सभी संकट दूर होते हैं।संकष्टी का अर्थ संकटों का हरण करने वाली चतुर्थी। माताएं अपनी संतान की मंगलकामना,दीर्घजीवन एवं ऐश्वर्य हेतु इस दिन उपवास रखती हैं। संकष्‍टी पर्व पर भगवान श्री गणेश जी की विशेष पूजा,अर्चना व उपवास रखा जाता है तथा श्रवण करने का विधान है।मुहूर्त।चतुर्थी तिथि प्रारंभ 17 जनवरी 2025 प्रातः 04:09 से 18 जनवरी 2025 प्रातः 05:33 तक। चंद्रोदय 17 जनवरी 2025 रात्रि 9:08 पर( सभी राज्यों का स्थानीय समय भिन्न होगा।पूजा विधि।नित्य कर्म से निवृत्त होकर संपूर्ण घर में गंगाजल का छिड़काव करें। तत्पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।पूजा स्थल पर अखंड ज्योत प्रज्वलित करें। गणेशजी की प्रतिमा को ईशान कोण में एक चौकी पर स्‍थापित करें। चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाए। गणेशजी को शुद्ध जल या गंगा जल से स्नान कराएं। स्वयं पर भी गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें। गणपतिजी को अक्षत, रोली, कुमकुम, पंच मेवा, पंच मिठाई, पंच फल, पान,सुपारी अर्पित करें। धूप-दीप चढ़ाएं। भगवान गणेश को लाल व पीले पुष्प की माला अर्पित करें। गणेश जी को लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। गणेश  मंत्र-( ॐ गं गणपतये नमः”) का जप करते हुए 108 दूर्वा गणेश जी को अर्पित करें। गणेश जी के इस मंत्र का जप करें –रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्षत्रैलोक्यरक्षकं।भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्॥11 घी बत्तियों से गजानन महाराज की आरती करें। चंद्रोदय के उपरांत चंद्र देव को अर्घ देकर व तिल के लड्डू का प्रसाद ग्रहण करें। आगे पढ़ें क्या है संकष्टी चतुर्थी की कथा…….

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व्रत कथा। एक बार देवी पार्वती स्नान हेतु गईं उन्होंने द्वार पर गणेश को खड़ा कर दिया एवं श्री गणेश को आज्ञा दी कि कोई भी भीतर प्रवेश ना करें। भगवान श्री गणेश जी माता की आज्ञा का पालन करते हुए सभी का प्रवेश वर्जित कर दिया। यहां तक कि भगवान गणेश ने अपने पिता शिव को भी अंदर आने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देख मां पार्वती विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने का हठ करने लगीं।जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया और गणेश गजानन कहलाने लगे। इस दिन से भगवान गणपति की प्रथम पूज्य के रूप में आराधना की जाने लगी। तभी से इस तिथि को संकट चतुर्थी के रूप में पूजा जाने लगा। इसी दिन से जो भी माताएं अपनी संतति हेतु उपवास रखती हैं उन्हें दीर्घायु प्राप्त होती है।संकट चतुर्थी पर अपने सामर्थ्य अनुसार जरूरतमंद व्यक्तियों को अन्न, वस्त्र अवश्य दान करें।ज्योतिषाचार्य डॉ मंजू जोशी

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