हरे लाल पीले काले रसभरे
आओ आजकल काफल पक रहे
लदे वृक्ष छटा अनुपम
करिश्मे कुदरत के बरस रहे.
फल पहाड़ी पर्वत की सौगात
राज्य फल अपने उत्तराखण्ड का
बस देखो तोड़ो डालो मुंह में
लो आनंद है दाना मुफ्त का.
ओ काफल तुम हो दिव्य
मेरे पहाड़ की पहचान हो
रचे बसे हो हर जनमन में
पहाड़ी गीत की आत्मा हो.
बनाते तुम इसको स्वर्ग सा
पावन देवभूमि के मोती हो
तेरे गुण अनंत हे मोहक मेवा
गिरि कानन की लघु ज्योति हो.
दीवान सिंह कठायत ,प्रधानाध्यापक, रा आ प्रा विद्यालय उडियारी बेरीनाग पिथौरागढ.