कुमाऊँ

चंपावत लोहाघाट: एबट माउंट के अंग्रेज

चंपावत से मदन सिंह महर की कलम से

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उत्तराखण्ड में कुमाऊँ के जिला चम्पावत के लोहाघाट नगर के नजदीक एबट माउंट नामक एक बहुत ही खूबसूरत स्थान है. करीब साढ़े छः हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान की पर्यटन संबंधी तमाम डीटेल्स आपको किसी भी सम्बंधित वेबसाईट पर मिल जाएंगी. आज हम आपको यहाँ के इतिहास के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य बताने जा रहे हैं.

अमूमन इस स्थान के बारे में बताया जाता है कि इसे एक अँगरेज़ व्यवसायी जॉन हैरल्ड एबट ने बसाया था. यह बात आंशिक रूप से सत्य भी है लेकिन इस के साथ जॉन की पत्नी कैथरीन का नाम भी लिया जाना चाहिए. 

झांसी में एक जमींदार की हैसियत से रह रहे जॉन हैरल्ड एबट को स्वास्थ्य संबंधी कारणों से पहाड़ों पर जाने की सलाह दी गयी थी. अपने पति को लेकर कैथरीन एबट सबसे पहले रानीखेत गईं. जहां उन्होंने एक बड़ा सा बँगला खरीदा जिसे अँगरेज़ सैन्य अफसर नार्मन ट्रूप द्वारा बनाया गया था. इस बंगले में चाय का बागान लगाने हेतु ट्रूप का दोस्त विलियम होम इंग्लैण्ड से आया था जिसके नाम पर इसका नाम होम फ़ार्म किया गया. उल्लेखनीय है कि आज यहाँ होम फ़ार्म हेरिटेज के नाम से एक आलीशान रेसौर्ट चलता है।
होम फ़ार्म रानीखेत

कैथरीन अपने पति के साथ कुछ समय यहाँ रही भी लेकिन जॉन हैरल्ड एबट को और भी अधिक खुली जगह चाहिए थी. सो होम फ़ार्म को बेच कर, काफी खोज बीन के उपरान्त करीब हज़ार एकड़ में फ़ैली पूरी पहाड़ी एक टी-एस्टेट को रेवरेंड बोस से खरीदा गया जिसे आज एबट माउंट के नाम से जाना जाता है.

एबट माउंट नामकी खूबसूरत कॉलोनी का नामकरण उसके मालिक मिस्टर एबट के नाम पर हुआ है. वे झांसी में जमींदार थे और एबट माउंट में आ कर बसने वाले पहले व्यक्ति थे. इस कॉलोनी से हिमालय का अद्भुत नजारा दिखाई देता है. धीरे धीरे मिस्टर एबट ने कुछ रिटायर्ड एंग्लो-इंडियंस और अंग्रेज साहबों को यहाँ बसने के लिए तैयार किया और उन्हें बगीचे बनाने के लिए जमीन दी. यहाँ के बाशिंदे अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक यहाँ रहते थे और नवम्बर की शुरुआत में मैदानों को चले जाते थे.

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उन्होंने यहाँ की ढलानों पर खूबसूरत बंगले बनाए और सेब के बगीचे लगाए. लेकिन उनके घरों का अनाज और अन्य सामान टनकपुर से आता था जहाँ रेल आती थी और जो यहाँ से पचास मील दूर था. इस वजह से यहाँ जीवन बहुत महंगा था. बगीचों से होने वाली आमदनी पर्याप्त न थी और बच्चों की पढ़ाई का कोई बंदोबस्त भी न था. इसका परिणाम यह हुआ कि यहाँ रहने वालों ने अपने बंगले बेच कर यहाँ से जाना शुरू कर दिया. उनमें से अधिकाँश लोग ऑस्ट्रेलिया चले गए जहाँ अंग्रेजों के लिए जीवनयापन के खूब मौके उपलब्ध थे.

मिस्टर एबट बहुत धूम-धड़ाके के साथ अपना जन्मदिन मनाया करते थे. वे लोहाघाट और आसपास के गाँवों के बड़े लोगों को आमंत्रित किया करते थे और उन्हें चाय और मिठाइयां पेश करते थे. जाहिर है मुख्य मेहमानों में एबट माउंट के बाशिंदे हुआ करते थे जो मौज मस्ती करने का कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ते थे. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता लोहाघाट का एसडीओ किया करता था. चूंकि एबट माउंट के बाशिंदे भद्र और उपकारी लोग थे, मेरी अपनी हैसियत में जो संभव था मैंने उनकी सहायता की.

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