नेताप्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा है कि बीजेपी सरकार का पूरे साल बीत गया,प्रधानमंत्री जी ने चुनाव पूर्व कहा था ” मित्रों अब पहाड़ का पानी और जवानी दोनों पहाड़ के काम आएगी ” सरकार का वादा था नया जनहितकारी भू-कानून लाएंगे, जो कृषि एवं अन्य भूमि_व्यवस्था सुधार आयोग के तहत कार्य करेगा। इसके अंतर्गत भूमि की पैमाइश कर उसे सिंचित-असिंचित में वर्गीकृत किया जाएगा, जिसे किसानों और भूमिधारकों को सहूलियत होगी। कमेटी बनी, सुझाव मिले, सुझावों को शामिल करके रिपोर्ट बनी, रिपोर्ट सरकार को सितम्बर 2022 में सौंप दी गई परंतु सरकार आजतक एक सशक्त भू-कानून लाने में वह नाकाम साबित हुई।आगे पढ़ें…..
उत्तराखंड राज्य निर्माण की लड़ाई जल, जंगल ज़मीन को लेकर थी। मगर आज जल स्रोत सूख रहे हैं, जंगल घट रहे हैं, कृषि भूमि ग़ैर कृषि कार्यों के लिए धड़ल्ले से दी जा रही है। सरकार से लगातार इस संदर्भ में प्रश्न पूछने पर रटा रटाया जवाब मिलता है कि प्रदेश सरकार शीघ्र ही भू-कानून के परीक्षण से संबंधित गठित समिति की रिपोर्ट का गहन अध्ययन कर जनहित व प्रदेश हित में समिति की संस्तुतियों पर विचार करेगी और भू-कानून में संशोधन करेगी। लेकिन प्रतीत होता है उत्तराखण्ड सरकार अस्वस्थ है देवभूमि की रक्षा के लिए, भू-क़ानून की प्रतिकिर्या अभी भी बदहाल है। भूमि बचाना सिर्फ भूमि बचाना नहीं अपितु भाषा, संस्कृति, परंपराओं को जीवित रखना भी है।कोई भी संस्कृति किराए पर जीवित नहीं रहती; परंपराएं जड़ से दूर होकर दम तोड देती है। आज प्रदेश में बाहरी राज्यों के धनवान लोगों द्वारा उत्तराखंड में बेरोकटोक भूमि का क्रय मनमाने ढंग से किया जा रहा है। जिससे उत्तराखंड के छोटे किसान अपनी भूमि से बेदखल हो रहे हैं तथा बिचौलिए एवं भू माफिया प्रदेश के निर्धन निवासियों का शोषण कर रहे हैं। बढते जनसंख्या घनत्व व बेतरतीब अवैध निर्माणों से पर्यावरण असंतुलन तो हैं ही साथ ही डेमोग्राफिक चेंज भी बहुत तेजी से हो रहा हैं।यदि इस प्रकार से जमीनों का विक्रय होता रहा तो भविष्य में इस पर्वतीय राज्य में युवाओं को कृषि बागवानी मौन पालन पुष्प उत्पादन पशुपालन डेयरी फल एवं सब्जी उत्पादन जैसे स्वरोजगार के लिए आवश्यक भूमि से वंचित होना पड़ेगा और आने वाली पीढ़ियों को टिकट बेरोजगारी एवं पलायन का सामना करना पड़ेगा।