वसंत ऋतु के आगमन का सांकेतिक प्रतीक होली पर्व रविवर को उदयव्यापिनी एकादशी भद्रायुक्त एवं त्रिमुहूर्त न्यूना होने से चीर बंधन ध्वजारोहण एवं रंग धारण किया गया।13 मार्च को होलिका दहन तथा 14 मार्च को स्नान दानार्थ पूर्णिमा और काशी में होली पर्व मनाया जाएगा।जबकि14 मार्च को उदयव्यापिनी प्रतिपदा ना होने के चलते पूरे देश में 15 मार्च को होली मनाई जाएगी। वही इस दिन चंद्र ग्रहण भी रहेगा जो कि भारत में अदृश्य है।आगे पढ़ें क्यों किया जाता है चीर बंधन….

चीर बंधन क्यों किया जाता है।मंदिरों में होली से पूर्व एकादशी पर खड़ी होली के पहने दिन चीर बांधने का अपना ही महत्व है। इस दिन लोग एक लंबे डंडे में नए कपड़ों की कतरन को बांधकर मंदिर में स्थापित कर चीर के चारो ओर लोग होली गायन करते हैं और घर-घर जाकर होली गाते हैं। होलिका दहन के दिन इस चीर को होलिका दहन वाले स्थान पर लाते हैं और डंडे में बंधे कपड़ों की कतरन को प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं।जिसे लोग अपने घरों के मुख्य द्वार पर बांधते हैं।ऐसी मान्यता है कि इससे घर में बुरी शक्तियों का प्रवेश नहीं होता और घर में सुख शांति बनी रहती है।आगे पढ़ें होली पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण….

होली पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण।होली पर्व बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है शरद ऋतु का समापन और बसंत ऋतु के आगमन का समय पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान बढ़ता है। होलिका दहन पर आग की परिक्रमा करने से सभी बैक्टीरिया समाप्त हो जाते हैं और आसपास का वातावरण शुद्ध होता है। इसके अतिरिक्त वसंत ऋतु के आसपास मौसम परिवर्तन होने के कारण मनुष्य आलस/सुस्ती से ग्रसित हो जाता है जिसे दूर करने हेतु जोर-जोर से संगीत सुनता एवं गाता है प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करने से शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है।













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