काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’।
‘लै कौवा भात में कै दे सुनक थात’।
‘लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़’।
‘लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़’।
नैनीताल। मकर सक्रांति घुघुतिया त्यार इस बार 14 जनवरी को नही बल्कि 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। मकर संक्राति भारत वर्ष के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम एवं अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। जैसे तमिलनाडु में पोंगल, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी, गुजरात में उत्तरायण, पश्चिम बंगाल में गंगासागर मेला तथा उत्तराखंड में मकर संक्रांति पर्व को घुघुतिया और उत्तरैणी के नाम से भी जाना जाता है। वही कुमाऊं परिक्षेत्र में मकर संक्रांति पर्व को ‘घुघुतिया’ त्यार के तौर पर मनाया जाता है।इस दिन बच्चे घर-घर जाते हैं और सभी बड़ो का आशीर्वाद लेते हैं तथा लोग उपहार स्वरूप बच्चों को गुड़ देते हैं। पूरे गांव में घूमकर बच्चों के पास काफी गुड़ इकट्ठा हो जाता है, फिर शाम को गुड़ व आटे के घुघुते बनाए जाते हैं और दूसरे दिन सुबह फिर बच्चों द्वारा उन घुघूतों को सबसे पहले पितरों के रूप माने जाने वाले कौवों को बुलाकर खिलाया जाता है। आगे पढ़ें
ज्योतिषाचार्य डॉक्टर मंजू जोशी के अनुसार,मकर संक्रांति पर सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसी को मकर संक्रांति पर्व के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर्व 15 जनवरी 2023 को मनाया जाएगा। क्योंकि 14 जनवरी को सूर्यदेव रात्रि 8:45 पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे जो कि सूर्यास्त से तीन घटी से अधिक अर्थात एक घंटा बारह: मिनट से अधिक होने से मकर संक्रांति पर्व अगले दिन मनाने का निर्णय दिया गया है। जिसका उल्लेख मुहूर्त चिंतामणि के संक्रांति प्रकरण के सातवें श्लोक में भी किया गया है। आगे पढ़ें
घुघुतिया त्यार की पौराणिक कथा……..मान्यताओं के अनुसार जब कुमाऊं में चंद वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य उसे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नीक बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। बाघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भयचंद पड़ा। निर्भय को उसकी मां प्यार से ‘घुघुति’ के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिसमें घुंघुरू लगे हुए थे।जब वह किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां उससे कहती कि जिद न कर, नहीं तो मैं माला कौवे को दे दूंगी। घुघुती को डराने के मकसद से मां ‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’। यह सुनकर कई बार कौवे आ जाते थे जिसको देखकर घुघुति जिद छोड़ देता।उधर मंत्री, जो राजपाट की उम्मीद लगाए बैठा था, घुघुति को मारने की सोचने लगा ताकि उसी को राजगद्दी मिले। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था, तब वह उसे चुप-चाप उठाकर ले गया।आगे पढ़ें
जब वह घुघुति को जंगल की ओर लेकर जा रहा था, तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। सभी कौवे इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मंडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपटकर ले गया। सभी कौवों ने एकसाथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबराकर वहां से भाग खड़े हुए। तभी एक कौवा हार लेकर सीधे महल में चला गया और सभी लोग कौवे की पीछे पीछे जंगल की ओर चल दिए कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया।राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। बेटे घुघुति के मिल जाने पर मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे। घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे-धीरे सारे कुमाऊं में फैल गई और तबसे इसको बच्चों के त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा।आगे पड़े