उत्तराखण्ड

हिसालू जात बड़ी रिसालू जा-जा जांछे उधेड़ि खाँछे

नैनीताल। उत्तराखंड के कुमाउं व गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र अनेक प्राकृतिक जडी-बूटियों एवं औषधीय गुणों से युक्त फलों से भरा पडा है,ये जड़ी-बूटियाँ एवं औषधीय पौधे अपने कई ऐसे गुणों को समेटे हैं, जिनमें काफल की तरह ही जेठ-असाड़ माह में पहाड़ की रूखी-सूखी धरती पर छोटी कांटेदार झाड़ियों में उगने वाला एक जंगली रसदार हिसालू भी पहाड़ी क्षेत्रों का अद्वितीय और स्वादिष्ट फल है। काफल की तरह ही हिसालु भी औषधिय गुणों से भरपूर माना जाता है।खट्टा और मीठे स्वाद से भरा हिसालू इतना कोमल होता है कि हाथ में पकडते ही टूट जाता है एवम् जीभ में रखो तो पिघलने लगता है। इसका लेटिन नाम रुबस एलिपटिक्स जिसमे एंटी ऑक्सीडेंट की अधिक मात्रा होने की वजह से यह फल शरीर के लिए काफी गुणकारी माना जाता है। इसके जड़ से प्राप्त रस का प्रयोग करने से पेट सम्बंधित बीमारियों दूर हो जाती है। इसके फलों से प्राप्त रस का प्रयोग बुखार,पेट दर्द, खांसी एवं गले के दर्द में बड़ा ही फायदेमंद होता है।हिसालू फल के नियमित उपयोग से किडनी-टोनिक के रूप में भी किया जाता है।

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