कुमाऊँ

मंगलवार जेष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि,गंगा दशहरा पर्व पर विशेष: ज्योतिषाचार्य डॉ मंजू जोशी

आज मंगलवार को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जा रहा है प्रत्येक वर्ष जेष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को गंगा अवतार दिवस मनाया जाता है।इस वर्ष गंगा दशहरा पर्व पर हस्त नक्षत्र एवं सिद्धि योग बनने से गंगा दशहरा पर्व पर गंगा स्नान का महत्व और भी शुभ फलदाई रहेगा मुहूर्त दशहरा तिथि प्रारंभ 29 मई 2023 सोमवार को प्रातः 11:50 से 30 मई 2023 दिन मंगलवार अपराह्न 1:50 मिनट तक। अभिजीत मुहूर्त 11:51 से 12:46 तक।

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क्यों मनाया जाता है गंगा दशहरा।हर वर्ष हम गंगा दशहरा पर्व मनाते हैं आप सभी को विदित ही होगा कि गंगा दशहरा क्यों मनाया जाता है। गंगा दशहरा गंगा मैय्या को समर्पित एक पर्व है, जिसे ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। गंगा दशहरा मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।गंगा दशहरा के दिन प्रातःकाल उठकर गंगा जी में स्नान करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। उसके बाद सूर्य देव को गंगा जल मिले जल से जल अर्पित करें। घर में पूजा स्थल पर जाकर यथावत पूजा संपन्न कर भोग व आरती पूर्ण श्रद्धा से अर्पित करें आगे पढ़ें…..

कैसे आई धरती पर गंगा।स्कन्दपुराण के अनुसार माना जाता है भागीरथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धरती पर गंगा को लाना चाहते थे *(गंगा को धरती पर लाना इसलिए जरूरी था क्योंकि पृथ्वी का सारा जल अगस्त्य ऋषि पी गये थे और पूर्वजों की शांति तथा तर्पण के लिए कोई नदी धरती पर बची नहीं थी।)* क्योंकि एक श्राप के कारण केवल मां गंगा ही उनका उद्धार पर सकती थी। जिसके लिए उन्होंने मां गंगा की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा ने दर्शन दिए और भागीरथ ने उनसे धरती पर आने की प्रार्थना की। फिर मां गंगा ने प्रसन्न होकर कहा “मैं धरती पर आने के लिए तैयार हूं , लेकिन मेरी तेज धारा धरती पर प्रलय ले आएगी। जिस पर भागीरथ ने उनसे इसका उपाय पूछा और मां गंगा ने भगवान भोलेनाथ जी को इसका उपाय बताया। मां गंगा के प्रचंड वेग को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समा लिया जिससे धरती को प्रलय से बचाया जा सके और तत्पश्चात गंगा मां को नियंत्रित वेग से पृथ्वी पर जनमानस के उद्धार के लिए प्रवाहित किया। जिसके बाद भागीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियां प्रवाहित कर उन्हें मुक्ति प्रदान की व पवित्र मां गंगा को धरती पर ला कर जनमानस का कल्याण किया।आगे पढ़ें

उत्तराखंड में कैसे बनाया जाता है गंगा दशहरा उत्तराखण्ड में गंगा दशहरा पर्व मनाने का एक अलग ही उत्साह है, यहां पर गांव-कस्बों में दशहरा पर्व पर मंदिरों के चैखटों में रंग-बिरंगे द्वार पत्र लगाये जाते हैं गांव के कुल पुरोहित अपने हाथों से द्वार पत्र बनाते है व अपने हाथों से इन्हें यजमानों को दिया करते हैं और बदले में उन्हें यजमानों द्वारा श्रद्धा पूर्वक दक्षिणा प्रदान की जाती है। उन द्वार पत्रों को घर के मुख्य द्वार पर मंदिर व घर के सभी द्वार पर चिपकाया जाता है। मान्यतानुसार यह द्वार पत्र सुरक्षा कवच की तरह काम करता है इससे सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है दशहरा द्वार पत्र रंग-बिरंगी आकृतियों में बनाए जाते है परंतु अब बाज़ार से छपे हुए दशहरा पत्र चलन में दिखाई देते हैं। दशहरा पत्र को पुरोहितों द्वारा सुरक्षा मंत्र से पूरित किया जाता है इसमें लिखा एक मंत्र इस तरह का है। आगे पढ़ें…...

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मनाया जाता है गंगा दशहरा।हर वर्ष हम गंगा दशहरा पर्व मनाते हैं आप सभी को विदित ही होगा कि गंगा दशहरा क्यों मनाया जाता है। गंगा दशहरा गंगा मैय्या को समर्पित एक पर्व है, जिसे ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। गंगा दशहरा मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।गंगा दशहरा के दिन प्रातःकाल उठकर गंगा जी में स्नान करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। उसके बाद सूर्य देव को गंगा जल मिले जल से जल अर्पित करें। घर में पूजा स्थल पर जाकर यथावत पूजा संपन्न कर भोग व आरती पूर्ण श्रद्धा से अर्पित करें आगे पढ़ें…..

कैसे आई धरती पर गंगा।स्कन्दपुराण के अनुसार माना जाता है भागीरथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धरती पर गंगा को लाना चाहते थे *(गंगा को धरती पर लाना इसलिए जरूरी था क्योंकि पृथ्वी का सारा जल अगस्त्य ऋषि पी गये थे और पूर्वजों की शांति तथा तर्पण के लिए कोई नदी धरती पर बची नहीं थी।)* क्योंकि एक श्राप के कारण केवल मां गंगा ही उनका उद्धार पर सकती थी। जिसके लिए उन्होंने मां गंगा की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा ने दर्शन दिए और भागीरथ ने उनसे धरती पर आने की प्रार्थना की। फिर मां गंगा ने प्रसन्न होकर कहा “मैं धरती पर आने के लिए तैयार हूं , लेकिन मेरी तेज धारा धरती पर प्रलय ले आएगी। जिस पर भागीरथ ने उनसे इसका उपाय पूछा और मां गंगा ने भगवान भोलेनाथ जी को इसका उपाय बताया। मां गंगा के प्रचंड वेग को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समा लिया जिससे धरती को प्रलय से बचाया जा सके और तत्पश्चात गंगा मां को नियंत्रित वेग से पृथ्वी पर जनमानस के उद्धार के लिए प्रवाहित किया। जिसके बाद भागीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियां प्रवाहित कर उन्हें मुक्ति प्रदान की व पवित्र मां गंगा को धरती पर ला कर जनमानस का कल्याण किया।आगे पढ़ें

उत्तराखंड में कैसे बनाया जाता है गंगा दशहरा उत्तराखण्ड में गंगा दशहरा पर्व मनाने का एक अलग ही उत्साह है, यहां पर गांव-कस्बों में दशहरा पर्व पर मंदिरों के चैखटों में रंग-बिरंगे द्वार पत्र लगाये जाते हैं गांव के कुल पुरोहित अपने हाथों से द्वार पत्र बनाते है व अपने हाथों से इन्हें यजमानों को दिया करते हैं और बदले में उन्हें यजमानों द्वारा श्रद्धा पूर्वक दक्षिणा प्रदान की जाती है। उन द्वार पत्रों को घर के मुख्य द्वार पर मंदिर व घर के सभी द्वार पर चिपकाया जाता है। मान्यतानुसार यह द्वार पत्र सुरक्षा कवच की तरह काम करता है इससे सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है दशहरा द्वार पत्र रंग-बिरंगी आकृतियों में बनाए जाते है परंतु अब बाज़ार से छपे हुए दशहरा पत्र चलन में दिखाई देते हैं। दशहरा पत्र को पुरोहितों द्वारा सुरक्षा मंत्र से पूरित किया जाता है इसमें लिखा एक मंत्र इस तरह का है। आगे पढ़ें……

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चते वज्रवारकाःमुनेः कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात्विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डले यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वरः भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा।डॉ. मंजू जोशी ज्योतिषाचार्य 8395806256

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