नैनीताल। टमाटर के बार फिर से आम आदमी की थाली से दूर होता जा रहा है।नगर के मल्लीताल व तल्लीताल में टमाटर 100 रुपये किलो तो वही दूरस्थ क्षेत्रो में 130 रुपये किलो में मिल रहा है,जिसके चलते लोगो ने अब टमाटर से दूरी बनानी शुरू कर दी है।वही लोगो का कहना है कि पहले से ही लोग महंगाई की मार झेल रहे है, ऐसे में टमाटर भी 100 के पार चले गया है जिससे अब लोग सब्जी में टमाटर का इस्तेमाल भी नही कर पा रहे है।आगे पढ़ें……
त्रिभुवन फर्त्याल महासचिव मल्लीताल ब्यापार मंडल। भीषण गर्मी बारिश में देरी और इन सबसे ऊपर सरकारों की सुस्त कार्यप्रणाली के चलते टमाटर की कीमतें आज आम से खास की पहुंच से दूर हो गई हैं। मई माह में टमाटर की कीमत खुदरा बाजार में 10 से 20 रुपए प्रति किलो थी।किसानों विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र के सीमांत काश्तकारों को टमाटर के उत्पादन से विगत माह लागत वसूली तक नहीं हो पाई हैं।टमाटर सहित अन्य कृषि एवं उद्यान उत्पादनों को संरक्षित करने हेतु ना तो स्थानीय स्तर पर कोल्ड स्टोरेज की ही व्यवस्था है,और ना ही किसानों के खेतों पर सड़कों की पहुंच,जिससे कि कृषि उत्पाद मैदानी क्षेत्रों में उपलब्ध संसाधनों एवं कोल्ड स्टोरेज तक समय सीमा अंतर्गत पहुंच सके।यदि केंद्र एवं राज्य सरकारों की इच्छा शक्ति होती तो निश्चित ही टमाटर का उत्पादन जब अधिक था तो स्थानीय स्तर पर महिला स्वयं सहायता समूह एवं अन्य माध्यमों से टमाटर की फसल को प्रोसेस कर उससे प्यूरी, पेस्ट, कैच-अप,सोस इत्यादि में तब्दील कर ना केवल किसानों को लाभान्वित किया जा सकता था बल्कि उन्हें खेती- किसानी के लिए भी प्रोत्साहित सहित बाजार मूल्यों को भी नियंत्रित किया जा सकता था।वास्तविकता यह है कि विगत माह में टमाटर के उत्पादन से लागत तक की वसूली ना होने के चलते निराश काश्तकारों ने टमाटर की शेष बची हुई फसलों को या तो खेतों में ही छोड़ दिया या फिर मवेशियों को खिलाने के लिए विवश हुए।सरकारों द्वारा किए गए तमाम दावे हवा-हवाई साबित हुए।टमाटर की फसल का सही दाम न मिलने के चलते काश्तकारों ने टमाटर की शेष लगी फसल में आवश्यक दवाइयों एवं खाद का भी छिड़काव नहीं किया, जिसके चलते भी टमाटर का उत्पादन प्रभावित हुआ है। पर्वतीय क्षेत्रों में अतिवृष्टि के चलते भी टमाटर की खेती बर्बाद हो रही है, जिससे टमाटर की आवक भविष्य में प्रभावित होने का अनुमान है।यदि टमाटर की उन्नत किस्म की पौध जैसे दिव्या, अभिनव, पूसा- गौरव, अर्का-अभिजीत, अर्का -रक्षक आदि किस्म की पौध के साथ ही खाद और आवश्यक दवाइयों ,तकनीकों को सही समय में उपलब्ध करा दिया जाता तो ना केवल छोटे काश्तकारों की आर्थिकी मजबूत होती बल्कि बाजार में टमाटर के मूल्यों को भी नियंत्रित करने में सहायक होती।रही-सही कसर सरकार की कमियों के चलते काश्तकारों का बिचौलियों के बिछाए जाल में फंसने से दुश्वारियां दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं,सरकारें इस ओर आंखें मूंदे हुए हैं।कुल मिलाकर आज की परिस्थितियों में समाज में सबसे अधिक कोई वर्ग यदि असुरक्षित है तो वह है किसान विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों का सीमांत काश्तकार। कृषि उत्पाद अधिक हो तो फसल का मूल्य नहीं और यदि सरकार एवं मौसम की मार पड़ जाये तो किसान असहाय एवं लाचार हो जाता है।
त्रिभुवन फर्त्याल महासचिव मल्लीताल व्यापार मंडल व कांग्रेस नेता