तीन सितंबर रविवार संकष्टी चतुर्थी का हिंदू धर्म में खास महत्व है। इस दिन भगवान गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना का विधान है। संकट चतुर्थी को माताएं संतान की दीर्घायु व खुशहाली की कामना हेतु निर्जला उपवास रखती हैं।पूजा विधि नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नाननादि करने के उपरांत उपवास का संकल्प लें। गणेशजी की प्रतिमा को ईशान कोण में एक चौकी पर स्थापित करें। चौकी पर लाल वस्त्र बिछाए। गणेशजी को गंगाजल से स्नान कराएं। लाल वस्त्र अर्पित करें गणेश जी का श्रंगार करें। रोली, कुमकुम, अक्षत, लाल पुष्प 108 दूर्वा अर्पित करें। पान, सुपारी और लड्डू व 11 मोदक का भोग लगाएं। धूप व घी का दीपक जलाएं। गणेश जी की आरती उतारें। और गणेशजी के इन मंत्रों का पाठ करें जिससे आपके जीवन की सभी बाधांए और परेशानियां दूर होंगी और जीवन में शुभता का आगमन होगा है।आगे पढ़ें
‘ॐ गं गणपतये नम’ । ‘ॐ वक्रतुंडाय हुं”ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा’। ‘ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा’। ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा’।आगे पढ़ें
चंद्रमा की पूजा पूरे दिन उपवास रखने के उपरांत संध्या काल में चंद्रदेव को शहद, रोली, मिश्रित दूध से चांदी या स्टील के बर्तन अर्घ्य दें। चंद्रदेव को रोली, कुमकुम, अक्षत, पुष्प धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। गणेश जी को तिल के लड्डू एवं मोदक अर्पित करें। ग्यार: घी की बत्ती जलाकर आरती करें। प्रशाद ग्रहण कर उपवास खोलें।आगे पढ़ें
व्रत कथा एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने दरबार पर गणेश को खड़ा कर दिया और किसी को अंदर नहीं आने देने का आदेश दिया।जब भगवान भोलेनाथ आए तो गणपति ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देख मां पार्वती विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने की हठ करने लगीं। जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया और गणेशजी को गजानन कहा जाने लगा। संकट चौथ के दिन ही भगवान गणेश को 33 कोटी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस दिन से भगवान गणपति को प्रथम पूज्य होने का का वरदान प्राप्त हुआ।