प्रदेश में जल संकट को लेकर ओखलकांडा ब्लॉक नाई गांव निवासी पर्यावरण प्रेमी चंदन नयाल ने बताया कि उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य होने के साथ ही हिमालयी राज्यों की श्रेणी में भी आता है , जहां हिमालय की बात करें तो वहां जल संकट कैसे हो सकता है,परन्तु यह कटु सत्य है उत्तराखंड में बहुत गहरा जल संकट आने वाला है , हिमालय से निकलने वाली नदियां तराई और भाबर के घरों घरों तक जाकर प्यास बुझा रही हैं परन्तु पहाड़ों पर यह नदी का पानी नहीं पहुंच पा रहा है और गैर हिमानी नदियों की बात करें तो उनका जल स्तर तो तेजी से घट रहा है गैर हिमालयी नदियों के जल स्रोत ,नौले ,धारे ,शिमार तेजी से सूख गए है साथ ही घने बांज बुरांश खरसू के जंगलों कुछ दसकों से तेज़ी से काट दिए गए हैं जिस कारण नदियों का जल स्तर तेजी से गिर चुका है ,आज पहाड़ों को जरूरत है बारिश के पानी को रोककर जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की पहाड़ के पोखरों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
नयाल ने बताया कि पहाड़ों में चाल खाल खंतियां पोखर बनाए जाएं पहाड़ों में आदमियों द्वारा खोदकर ही चाल खाल खंतियां पोखर बनाए जाते हैं मशीनों का प्रयोग पहाड़ों में नहीं किया जा सकता है पहाड़ों में पौधे लगाने पर उनकी ग्रोथ कम होती है जिस कारण अधिकतर लोग पहाड़ों पर काम नहीं कर पाते पहाड़ों में पानी और पेड़ों के लिए कार्य करना बहुत कठिन है। परन्तु सरकार हो सरकारी तन्त्र हो या फिर एनजीओ सभी को पहाड़ों में बढ़ते जल संकट पर युद्ध स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है जल शक्ति मंत्रालय के साथ वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भी इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है बारिश पहाड़ों में अच्छी होती है पर वह पहाड़ के काम नहीं आ पाती है ।जल है तो कल है पहाड़ों में जनसंख्या कम होने के कारण पहाड़ों की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है जिस कारण पहाड़ों की समस्याओं को सरकारी तन्त्र नहीं समझ पा रहा है।