नैनीताल। जलवायु परिवर्तन का असर मौसम के साथ- साथ अब तेजी से ऋतुओ में भी दिखाई देने लगा है। उत्तराखंड के जंगलो मे पाए जाने वाला औषधि गुणों से भरपूर काफल के बाद अब बुरांश भी समय से पहले ही खिल चुका है। फरवरी-मार्च माह में खिलने वाला ये फूल 8 माह पूर्व जुलाई माह में ही खिल गया है।जिससे पर्यावरण के जानकारों सहित वैज्ञानिक भी हैरत में है।आगे पढ़ें….
तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के चलते जहां मौसम में काफी बदलाव आए है वही अब ऋतुओ में भी परिवर्तन देखने को मिल रहे है।जनपद के धारी ओखलकांडा, रामगढ़ आदि क्षेत्रो में फरवरी मार्च में खिलने वाला बुरांश जुलाई माह में खिलने से सभी लोग अचंभित है।वही ओखलकांडा निवासी पर्यावरण प्रेमी चंदन नयाल ने कहा कि ऐसा पहली बार दिखाई दिया है।कहा कि लगातार जंगलो का दोहन के चलते जलवायु परिवर्तन हो रहा है और अगर हमें इसे रोकना है तो अधिक से अधिक मात्रा में पेड़ लगाने होंगे।आगे पढ़ें क्या कहते है विशेषज्ञ
प्रो ललित तिवारी वनस्पति विभाग डीएसबी परिसर नैनीताल।उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश जिसे रोडोडेंड्रोन आर्बोरियम कहते है 1800 मीटर से उपर पाया जाता है। वैसे तो प्रकृति में इसकी 1200 प्रजातियां है, भारतीय हिमालय क्षेत्र में 87 प्रजाति मिलती है तथा उत्तराखंड में 6 प्रजाति मिलती है। वैसे तो बुरांस में फ्लावरिंग फरवरी मार्च में होती है किंतु जलवायु परिवर्तन से ये बुरांस में बदल जा रहा है।हालाकि बुरांस के लिए कहते है की ये कई बार तथा अलग अलग समय में खिलते है लाइट का ज्यादा होना तथा फाइटोक्रोम की क्रिया इससे प्रभावित करती है, फ्लावरिंग जीवन चक्र का महत्पूर्ण प्रवाह है लाइट से फोटो रिसेप्टर एवम मेरिस्टम को एक्टिवेशन मिलता है।फ्लोरिजन एवम नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस भी इससे प्रभावित करते है जो ऊर्जा चक्र को प्रभावित करते है।पहले अध्यन में 26 दिन पहले तो दूसरे अध्यन में 30 से 60 दिन पहले खिलना बताया गया है। जिससे इसका जीवन चक्र प्रभावित हो रहा है, अधिक गर्मी तथा प्रेसिपिटेशन से पुष्प खिल रहे है।आगे पड़े क्या कहा वैज्ञानिकों ने
जलवायु परिवर्तन का ऋतुओं में भी पड़ा है असर।वाहनों की अत्यधिक वृद्धि से कार्बनिक कणों की मात्रा पर्वतीय क्षेत्रियों में बढ़ गई है।जिससे तापमान काफी हद तक अनियंत्रित हो चुका है। वहीं जलवायु परिवर्तन का असर फूलों और फलों पर भी पढ़ने लगा है पतझड़ जो पहले अक्टूबर में हो जाता था वहीं अब नवंबर दिसंबर में हो रहा है। यह सारे परिवर्तन बीते 10 वर्षों के अंतराल में देखने को मिला है। इतना ही नही, बीते एक दशक के अंतराल में नैनीताल के औसत तापमान मे दस डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। जिसके चलते अब धीरे धीरे नैनीताल सहित हिमालयी क्षेत्रो के मौसम में भारी अंतर आने लगा है।तापमान में असमय वृद्धि हुई है,जिसका असर यहां की जलवायु उपज पर्यटन व सामाजिक क्षेत्र में पड़ा है।यदि समय रहते कार्बनिक गैसों की बढ़ती रफ्तार में अंकुश नहीं लगाया गया तो भविष्य में मौसम की भारी दुश्वारियां झेलनी पड़ सकती हैं।डॉक्टर नरेंद्र सिंह पर्यावरण वैज्ञानिक एरीज।