कुमाऊँ

53वें पृथ्वी दिवस पर सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरण प्रेमी बृजवासी के विचार

भीमताल। पृथ्वी हमारी नहीं हम पृथ्वी के है। 1970 से हर वर्ष 22 अप्रैल को पूरी दुनिया भर में ‘पृथ्वी दिवस’ मनाया जाता है।इस वर्ष इसके 53 साल पूरे हो रहे हैं।समाजसेवी व पर्यावरण प्रेमी पूरन चंद्र बृजवासी द्वारा पृथ्वी दिवस के 53 वें साल के मौके पर पर्यावरण के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाने की लिए अपील करते हुए लिखा है कि ‘पृथ्वी हमारी नहीं हम पृथ्वी के है’। पृथ्वी दिवस’ मनाने का मुख्य उद्देश्य ‘पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण’ के प्रति लोगों को जागरूक करना है। पृथ्वी के उपर आधिपत्य स्थापित करने का हमारा प्रयास आत्‍मघाती है, हम यह भूल गये कि हमारा अस्तित्व प्रकृति से है, प्रकृति का हमसे नहीं।आगे पढ़ें…..

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वो चाहे तो संपूर्ण आर्थिक, समृद्धि एवं विकास को एक झटके में छोटे सूक्ष्मजीवों द्वारा मिटा सकती है। ‘मनुष्य और प्रकृति’ के बीच का संबंध युगों से है l दोनों एक-दूसरे के पूरक है l ‘अथर्ववेद में एक प्रतिज्ञा का वर्णन है’ : हे धरती माँ, जो कुछ भी तुमसे लूंगा, उतना ही तुझे वापस करूँगा l तेरी जीवनी शक्ति, सहन शक्ति पर कभी नहीं आघात करूँगा। मनुष्य जब तक प्रकृति के साथ किए गए इस वादे को पूरा करता रहा, तब तक स्वस्थ्य, सुखी, और संपन्न रहा, किंतु जैसे ही मनुष्य ने पृथ्वी पर अतिक्रमण शुरू किया, प्रकृति ने भी अपना विध्वंससक एवं विघटनकारी रूप दिखाना शुरू कर दिया।आगे पढ़ें……

पृथ्वी को हम कभी तिरस्कृत करके आगे नहीं बढ़ सकते हैं। प्रकृति हमारा पालन-पोषण करती है, अनंतकाल से यह हमारी सहचरी रही है, प्रकृति का मानव जीवन में इतना बड़ा महत्व होने के बाद भी हम अपने लालच के कारण उसका संतुलन बिगाड़ने पर तुले हैं, धरती पर जीवन का आरंभ और जीवन को चलाए रखने का काम प्रकृति की बड़ी पेचीदा प्रक्रिया है। ‘प्रकृति ने जो कुछ पैदा किया वह फिजूल नहीं’ l हर जीव का अपना महत्व है, वनस्पति से लेकर जीवाणुओं, कीड़े-मकोड़ों और मानव तक की जीवन प्रक्रिया को चलाए रखने में अपना-अपना योगदान रहा है। जीवन के लिए प्रकृति में शुद्ध हवा और शुध्द पानी के साथ-साथ अनेक प्रकार के जीव जंतु एवं वनस्पतियां में संतुलन का होना बेहद जरूरी है।आगे पढ़ें…..

प्रकृति पृथ्वी की जननी ही नहीं, बल्कि पूरा ब्रह्मांड इसी के प्रताप से चलता है। ‘पिछले दो दशकों’ में सार्स, इबोला, नेपाह और अब पिछले कुछ सालों में “कोरोना वाइरस” ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज को हिलाकर रख दिया है।’ऎसा लग रहा है कि मानों प्रकृति अपने रिमोट-कंट्रोल से रीसेट बटन दबाकर रिप्रोग्रामिंग कर रही है। दुनिया एकदम हिल उठी है। सैकड़ों से हजारों तक का आकड़ा लोगों की जान चली जाने का आया तो वही लाखों लोग बीमार भी हुए ।आधुनिक आर्थिक से जुड़ी तमाम इंसानी गतिविधियां ठप रही, यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और अमानवीय व्यवहार का ही परिणाम है। ‘कोविड-19 नामक महामारी’ ने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया है कि हमें अपनी ‘जीवनशैली और सोच’ को बदलना होगा अन्यथा भविष्य में और भी बड़े ‘लाॅक डाउन’ के साथ रहने का अभ्यास करना होगा।आगे पढ़ें……

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पृथ्वी पर ये जीवों के अस्तित्व की लड़ाई है, प्रकृति ने सबको अपनी जगह सुरक्षित रखा था, महामारी वाले विषाणुओं का ये आक्रमण मनुष्य के ही अतिक्रमण का परिणाम है, हमें प्रकृति के हर अंग की सीमाओं का ध्यान रखना होगा।कोरोना वाइरस महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि विकास और समृद्धि को नये सिरे से परिभाषित करने का उपयुक्त समय है, जो पारिस्थितिक संतुलन के संदर्भ में मापी जा सके न कि बढ़ति भौतिकवादी जीवनशैली के रूप में, सदियों से जंगली जानवरों में वाइरस के द्वारा मानव महामारी फैलती रही है। कई जानवर वाइरस पैदा करने वाली बीमारी के लिए मेजबान के रूप में कार्य करते हैं, जो वन्यजीवों से मनुष्यों तक पहुंच सकते हैं, लेकिन वाइरस से होने वाली ज्यादातर बीमारियाँ वन्य जीवों से ही आती रही है।आगे पढ़ें…..

हमें जंगली वन्य जीवों से वाइरस रोगों की रोकथाम के लिए “खाद्य-श्रृंखला” की वैज्ञानिकता और आवश्यकता को नए सिरे से समझना होगा, क्योंकि एक स्वस्थ और मजबूत ‘पारिस्थितिकी तंत्र’ ही हमें बीमारियों से बचा सकता है।पृथ्वी हमें बार-बार चेतावनी दे रही है’, हम बीमार है क्योंकि हमने अपनी मातृ-प्रकृति को बीमार कर दिया है l हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा।कोरोना काल में सारी दुनिया एक साथ खड़ी होकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना के साथ इस महामारी का सामना कर रही थी, यही भावना और इच्छा-शक्ति अब हमें अपने ‘पर्यावरण को बचाने’ के लिए भी आज से ही दिखानी होगी l

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