

















अश्विन माह शुक्ल पक्ष से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ होता है। शारदीय नवरात्र से शरद ऋतु का आगमन भी सनातन की वैज्ञानिकता दर्शाता है। शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ अलग–अलग स्वरूपों की पूर्ण श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना की जाती है। जिसके द्वारा हम स्त्री के सम्मान को भी दर्शाते हैं और स्त्री के भीतर उपस्थित मातृत्व से लेकर शक्ति रूप के दर्शन पाते है।आगे पढ़ें नवरात्रि पर विशेष योग…

नवरात्रि पर विशेष योग।शारदीय नवरात्रि पर 26 सितंबर तथा 28 सितंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग, सूर्य बुध की युति से बुधादित्य योग, रवि योग, शुक्ल योग का निर्माण हो रहा है।शरद नवरात्रि के प्रथम दिवस पर सोमवार होने के कारण देवी दुर्गा का आगमन हाथी पर होगा।धार्मिक मान्यतानुसार नवरात्र पर देवी दुर्गा यदि हाथी पर सवार होकर आती हैं तो यह भक्तों के लिए अच्छा संकेत है, इससे सुख समृद्धि में वृद्धि होगी, शांतिपूर्ण वातावरण रहेगा, फसलें अच्छी रहेंगी। चारों दिशाओं में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। देवी दुर्गा का हाथी पर विचरण करना अत्यंत ही शुभ कारक रहेगा।आगे पढ़ें कलश स्थापना विधि…..

कलश स्थापना विधि।नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि के उपरांत सम्पूर्ण घर व पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कीजिए। घी या तिल के तेल से नौ दिनों तक अखंड ज्योत प्रज्वलित करें। तत्पश्चात चौकी पर लाल आसन बिछाएं व आसन के उपर थोड़े चावल रखें और एक मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं और उस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें, कलश पर स्वास्तिक बनाएं। कलश में साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालकर नौ आम के पत्ते रखें नारियल लें और उस पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांध लें। इस नारियल को कलश के ऊपर रखते हुए अब मां दुर्गा का ध्यान व आव्हान करें। प्रतिदिन पूर्ण श्रद्धा पूर्वक माता के नौ रूपों की उपासना करें। घी का दीपक जलाएं। भोग अर्पित करें।






























































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