अल्मोडा। पंडित गोविंद बल्लभ पंत उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता सेनानी ,राजनीतिज्ञ ,हिमालय पुत्र नामों से पुकारे जाने वाले महान शख्सियत गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1987 को उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा जनपद के खूंट (धामस ) गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था ।उनके पिताजी का नाम मनोरथ पंत था।आगे पढ़ें….
आरंभिक जीवन। पंत ने प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई ।12 वर्ष की आयु में उनका विवाह गंगा देवी से हो गया था ।फिर 1905 में इंटर की परीक्षा पास करने के पश्चात वह उच्च शिक्षा हेतु इलाहाबाद विश्वविद्याल चले गए ।वहां म्योर सेंट्रल कॉलेज में रहते हुए उनका परिचय उच्च कोटि के नेताओं ,महापुरुषों से हुआ ।और उनके सानिध्य में रहते हुए उन्हें व्यापक राजनीतिक चेतना व जागरूकता के लिए बेहतर वातावरण मिला।आगे पढ़ें…..
कार्यक्षेत्र 1909 में कानून की डिग्री लेने के पश्चात उन्होंने रानीखेत व काशीपुर में वकालत की ।पंत जी सदैव खादी के वस्त्रों का प्रयोग करते थे और उनके द्वारा काशीपुर में एक चरखा संघ की विधिवत स्थापना की गई ।एक दिन अंग्रेज मजिस्ट्रेट ने उन्हें टोपी पहनकर कोर्ट में पहुंचने पर आपत्ति प्रकट की ।इस पर उन्होंने निर्भीकता से उत्तर दिया “मैं कोर्ट से बाहर जा सकता हुं पर यह टोपी नहीं उतार सकता हूं”आगे पढ़ें….
पंत की वकालत की धाक काशीपुर में होने के साथ सम्पूर्ण कुमाऊं में भी थी जिसके कारण लोगो में जागरूकता बढ़ी ।हिंदी प्रचार हेतु 1914 में काशीपुर में प्रेमसभा की स्थापना हुई ।1916 में वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गए व कुमाऊं परिषद के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।पंत जी ने कुमाऊं में राष्ट्रीय आंदोलन की अलख जगाई और लोगों को संगठित किया।आगे पढ़ें…..
कुमाऊं में राष्ट्रीय आंदोलन का आरंभ कुली उतार , जगलात आंदोलन ,स्वदेशी प्रचार तथा विदेशी कपड़ों की होली व लगानबंदी आदि से हुआ ।बाद में धीरे धीरे कांग्रेस द्वारा घोषित असहयोग आंदोलन की लहर कुमाऊं में छा गई ।पंत जी 1923 में स्वराज पार्टी के टिकट पर नैनीताल जिले के संयुक्त प्रांत की विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए जबकि 1927 में उन्हें सयुक्त प्रांत की कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष चुना गया ।1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लखनऊ में आयोजित प्रदर्शन का नेतृत्व पंडित जवाहरलाल नेहरू जी व पंत जी द्वारा किया गया ।वहां घुड़सवार पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को घोड़ों से रौंद डाला और नेहरू जी पर लाठियों से प्रहार किया गया ।पंतजी ने अपनी परवाह किए बिना साहस का परिचय देते हुए नेहरू जी की प्राणों की रक्षा की । और 1930 में गांधी जी के नेतृत्व में नमक आंदोलन में भी भाग लिया ।फिर 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें पुन: कारावास हुआ ।1934 में वे अखिल भारतीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष तथा केंद्रीय विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए ।1937 में इनके नेतृत्व में उत्तरप्रदेश में पहला कांग्रेसी मंत्रिमंडल बना भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 9 अगस्त 1942 में इन्हें कांग्रेस के अन्य सदस्यों के साथ मुंबई में गिरफ्तार किया गया और 31 मार्च 1945 तक अहमदाबाद के किले में नजरबंद रखा गया।1946 में संयुक्त प्रांत विधानसभा के लिए पुन: निर्वाचित हुए और मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए इनका कार्यकाल दिसंबर 1954 तक रहा ।पंत जी को भूमि सुधारो में पर्याप्त रुचि थी ।21 मे 1952 को जमीदारी उन्मूलन कानून को प्रभावी बनाया ।10 जनवरी 1955 को केंद्रीय कैबिनेट में गृहमंत्री के रूप में सम्मिलित हुए और देहवासन तक इस पद पर पदासीन रहे। आगे पढ़ें…
भारत रत्न। देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न उनके ही काल से आरंभ हुआ था । 1957 में गणतंत्र दिवस पर महान देशभक्त ,कुशल प्रशासक ,दूरदर्शी ,सफल वक्ता पंत जी को भारत की सर्वोच्च उपाधि भारत रत्न से विभूषित किया गया ।7 मार्च 1961 को उत्तराखंड के इस महान सपूत इस संसार से अलविदा कह गए ।आज उनकी याद में उनके जन्म स्थान पर एक स्मारक का निर्माण किया गया है ।उत्तराखंड के इस महान सपूत का त्याग ,बलिदान हमेशा के इतिहास के पन्नो अंकित हुआ और हमेशा देवभूमि के लिए प्रेरणा स्रोत रूप में याद किए जाएंगे। अल्मोड़ा से रेनू सत्यपाल की रिपोर्ट