कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।
प्रतिवर्ष माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष बसंत पंचमी गुरुवार को पड़ने के कारण और भी विशेष है साथ ही बसंत पंचमी पर्व पर सर्वार्थ सिद्धि योग, शिव योग, सिद्ध योग पड़ने से इसका महत्व और भी बढ़ जाएगा। इस योग में शिक्षा से संबंधित कोई भी कार्य एवं शिशुओं के विद्यारंभ संस्कार हेतु अति शुभ दिन रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी इसलिए बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा अर्चना का विधान है। देवी सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है और बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा से ज्ञान की वृद्धि होती है। साथ ही बसंत पंचमी से बसंत ऋतु का आगमन होता है। आगे पढ़ें
बसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी पर्व पर अबूझ मुहूर्त होता है। जिसमें सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं।मुहूर्त पंचमी तिथि प्रारंभ 25 जनवरी 2023 को अपराहन 12:37 मिनट से 25 जनवरी 2023 गुरुवार को प्रातः 10:31 तक।पूजा हेतु शुभ मुहूर्त प्रातः 7:34 से 9:14 तक।अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:12 से 12: 55 तक। आगे पड़े
पूजा विधि प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर संपूर्ण मंदिर व घर को स्वच्छ करें। स्नानादि के उपरांत देवी सरस्वती की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर सफेद या पीला आसन प्रदान करें। पीले वस्त्र धारण करवाएं। श्रंगार अर्पित करें। देवी सरस्वती के सम्मुख घी की अखंड अखंड ज्योति प्रज्वलित करें। पीली वस्तुओं का भोग अर्पित करें। पीले पुष्प अर्पित करें। देवी सरस्वती को ज्ञान की और वाणी की देवी कहा गया है अतः पुस्तकों और वाद्य यंत्रों का भी पूजन अवश्य करें।ओम ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः*। मंत्र का 108 बार जप करें 11 घी के दीपक जला कर देवी सरस्वती की आरती करें। जरूरतमंदों को पुस्तक एवं शिक्षा से संबंधित वस्तुओं का दान करना अति शुभ कारक माना जाता है। आगे पढ़ें
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन अपनी इस रचना से वह संतुष्ट नहीं हुए। ब्रह्मा ने विचार किया कि कुछ कमी रह गई है तब इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमंडल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़ककर भगवान विष्णु की स्तुति करनी आरंभ की। ब्रह्मा की स्तुति को सुनकर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए। उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आवाहन किया। विष्णु के द्वारा आवाहन होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गई। तब ब्रह्मा और विष्ण ने देवी दुर्गा से इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण दुर्गा माता के शरीर से श्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ। जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज के प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उस देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती”* कहा। फिर आदि शक्ति दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई यह देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेगी। जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति है। पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं। उसी प्रकार सरस्वती देवी आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कहकर आदिशक्ति श्री दुर्गा सभी देवताओं को देखते हुए अंतर्ध्यान हो गई। जब देवताओं को देखते-देखते वही अंतर्ध्यान हो गई। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए। सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती शारदा, वीणा वादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। यह विद्या और बुद्धि प्रदाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण यह संगीत की देवी भी हैं।