धर्म-संस्कृति

देवभूमि में पारंपरिक नौलों व जलस्रोतों का है विशेष महत्व 

भुवन बिष्ट, रानीखेत(अल्मोड़ा), उत्तराखंड
रानीखेत। अल्मोड़ा। जल ही जीवन है और बिना जल के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आज जब जल की एक एक बूंद बचाने की चारों ओर होड़ लगी हुई है वहीं जल के भंडार के रूप में जाने जाते हैं पारंपरिक नौले व पारंपरिक जलस्रोत। देवभूमि उत्तराखंड जहाँ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्व विख्यात है वही देवभूमि उत्तराखण्ड का हर कण कण अपनी महानता को बतलाता है।आजकल आधुनिकता की भागमभाग में कई पांरंपरिक महत्वपूर्ण धरोहरें संरक्षण के अभाव में दम तोड़ती नजर आ रही हैं। देवभूमि के पहाड़ों में पारंपरिक जलस्रोतों व नौलों का अपना एक विशेष योगदान रहा है। आज भी जब भीषण गर्मी पड़ती है, नल सूखने लगते हैं,नदियों का जलस्तर भी जब कम होने लगता है तो केवल पारंपरिक नौलों व पांरपरिक जल स्रोतों के सहारे ही लोग अपनी प्यास बुझाते हैं। प्रकृति में ऋतु परिवर्तन का चक्र सदा चलते रहता है और उसी के अनुसार जीवन को ढालकर चलना ही जिंदगी है। ऐसे ही गर्मी आते ही पानी की समस्या कभी कभी विकट समस्या बन जाती है। और इन विकट समस्याओं से निबटने में पारंपरिक नौलों व जलस्रोतों का एक महत्वपूर्ण योगदान रहता है। देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा नगरों व शहरों में भी प्राचीन नौले व पारंपरिक जलस्रोत बने हुवे हैं। उत्तराखण्ड को देवभूमि कहा जाने का अर्थ है कि यहां कण कण में देवताओं का वास है। प्राचीनकाल में देवभूमि के पहाड़ो के गांवों व शहरों में नौले विशेष शैली में निर्मित किये गये है।  देवभूमि के ये पारंपरिक नौले व जलस्रोत न केवल पानी की प्यास बुझाने तक सिमित हैं अपितु ये आस्था के भी केन्द्र रहे हैं। आज आधुनिकता भले ही परवान चढ़ रही हो किन्तु गांवों में नौलों व पारंपरिक जल स्रोतों पर लोगों की आस्था भी जुड़ी हुवी है। आज भी वैवाहिक रस्मों व नामकरण ,कथा व अन्य धार्मिक कार्यो में नौलों व पारंपरिक जलस्रोतों का पूजन किया जाता है तथा इसे भी एक तीर्थ स्थल के समान ही माना जाता है। नौलों का निर्माण भूमिगत पानी के रास्ते पर गड्डा बनाकर चारों ओर से सुन्दर चिनाई करके किया जाता था। ज्यादातर नौलों का निर्माण कत्यूर व चंद राजाओं के समय में किया गया इन नौलों का आकार वर्गाकार होता है और इनमें छत होती है तथा कई नौलों में दरवाजे भी बने होते हैं। जिन्हें बेहद कलात्मकता के साथ बनाया जाता था। नौलों का निर्माण शिल्प कला का बेजोड़ नमूना भी हैं। नौलों को विशेष शैली में बनाया गया है। इनकी छतें विशेष आकार में बनायी गयी हैं इनका जल सदैव ही शुद्ध रूप में रहा है। गर्मियों मे इनका जल ठंडा व सर्दियों मे  इनका जल गर्म भी रहता है।इनमें देवी देवताओं के सुंदर चित्र बने रहते हैं। यह नौले आज भी शिल्प का एक बेजोड़ नमूना हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड के गांव हों या शहर, एक समय था जब यहां पर समाज खुद अपने पीने के पानी की व्यवस्था करता था। वह राज्य या सरकार पर निर्भर नहीं रहता था। सदियों पुरानी पेयजल की यह व्यवस्था कुमाऊं के गांवों में नौला व पारंपरिक धारे के नाम से जानी जाती है। ये नौले और धारे यहां के निवासियों के पीने के पानी की आपूर्ति किया करते थे। इस व्यवस्था को अंग्रेजों ने भी नहीं छेड़ा था। यह व्यवस्था केवल तकनीक पर आधारित नहीं थी बल्कि पूरी तरह से यहां की संस्कृति को अपना आधार बनाकर किया जाने वाला काम था। कई अवसरों पर नौलों का महत्वपूर्ण स्थान देखा जाता है। शादी के बाद जब नई बहू घर में आती है तो वह घर के किसी कार्य को करने से पहले नौला पूजन के लिए जाती है और वहां से अपने घर के लिए पहली बार स्वच्छ जल भरकर लाती है। यह परंपरा आज तक भी चली आ रही है।इस पंरंपरा को नौला भेंटना व नौला पूजन कहा जाता है आज भी यह परंपरा गांवों मे जीवंत हैं। नौला सिर्फ पानी का स्रोत नहीं है, इसके साथ एक लोगों की आस्था भी जुड़ी होती है। हर नौले के पास एक मंदिर बनाने की परंपरा थी। नौले के समीप चौड़ी पत्ती के वृक्ष लगाने का भी चलन था। भले ही अनेक योजनाऐं पेयजल पर बनती हैं किंतु आज भी गर्मियों में लोग पारंपरिक नौलों व जलस्रोतों पर निर्भर रहते हैं। पारंरिक नौलों पर लोगों की गहरी आस्था भी जुड़ी होती है।आज पारंपरिक नौलों व पारंपरिक जलस्रोतों का संरक्षण भी आवश्यक है

Quis autem vel eum iure reprehenderit qui in ea voluptate velit esse quam nihil molestiae consequatur, vel illum qui dolorem?

Temporibus autem quibusdam et aut officiis debitis aut rerum necessitatibus saepe eveniet.

About

Kumaun vani (कुमाऊं वाणी) देवभूमि उत्तराखंड के कुमांउ व गढ़वाल के गांव-गधेरों की समस्याओ, ताजा खबरों व विलुप्त हो रही कुमांउनी व गढ़वाली संस्कृति को उजागर करने का एकमात्र डिजिटल माध्यम है। अतः आप भी अपने विचार व अपने क्षेत्र की समस्याओं व समाचारों को प्रकाशित करने के लिए हमसे [email protected] तथा दूरसंचार व व्हाट्सएप नम्बर 8171371321 पर सम्पर्क कर सकते है।

(खबरों की विश्वसनीयता ही हमारी पहचान है)

संपादक –

नाम: हिमानी बोहरा
पता: मझेड़ा, नैनीताल, उत्तराखण्ड
दूरभाष: +91 81713 71321
ईमेल: [email protected]

© 2022, Kumaun Vani (कुमाऊँ वाणी)
Get latest Uttarakhand News updates in Hindi
Website Developed & Maintained by Naresh Singh Rana
(⌐■_■) Call/WhatsApp 7456891860

To Top

You cannot copy content of this page