बीते 10 सितंबर शनिवार से पितृपक्ष प्रारंभ हो गए है।
हिंदू धर्म की एक विशेषता है कि यहां पर मनाये जाने वाले सभी धार्मिक पर्वों के पीछे वैज्ञानिक कारण व पर्यावरण संतुलन अवश्य होता है।वैसे ही पितृपक्ष के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है।
हिंदू धर्म में सभी त्योहारों की भांति पितृपक्ष का एक विशेष महत्व है। सोलह दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष में हम अपने दिवंगत पितरों के सम्मान व तारण हेतु तर्पण, पिंडदान व श्राद्ध कर्म करते हैं।
बात करते हैं अपनी सर्वश्रेष्ठ सनातन परंपरा की वैज्ञानिकता की…
आपने कम ही सुना होगा कि कोई पीपल,बरगद के पेड़ लगाए गए या कभी किसी को उनका बीज बोते हुए देखा गया हो या कोई ये बोले कि मैने पीपल और बरगद के बीज खरीदे।
क्योंकि बरगद और पीपल की कलम जितनी चाहे रोपने का प्रयत्न करें परंतु नहीं लगेगी। क्यों सोचिए !
क्योंकि प्रकृति ने इन दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही संरचना की है।
इन दोनों वृक्षों के फलों को कौवे ( *कौवे को हिंदू धर्म में पितरों की संज्ञा दी गई है*) खाते हैं और उनके पेट में ही बीज का प्रसंस्करण होता है और तब बीज उगने की स्थिती में आते है….
तत्पश्चात कौवे जहां-जहां बींट करते हैं, वहां वहां पर दोनों वृक्ष उगते हैं।
पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो दिन-रात ऑक्सीजन छोड़ता है और बरगद तो औषधीय गुणों की खान है। इसलिए दोनों वृक्षों को उगाने में कौवे का विशेष योगदान होता है क्योंकि मादा कौआ भाद्रपद माह में अंडे देता है और नवजात बच्चों का जन्म होता है इस नयी पीढ़ी के बहुपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना अति आवश्यक है इसलिए हमारे वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राद्ध के रूप मे पौष्टिक आहार विशेषकर दूध व चावल से बनी खीर व जल का प्रबन्ध करना प्रारंभ किया जिससे कि कौवों के नवजात बच्चों का पालन पोषण हो और और प्रकृति का संरक्षण होता रहे।
और हम सभी अपने श्रेष्ठ पूर्वजों को उनके पुण्य कर्मों को स्मरण कर उन्हें सम्मान देते रहें।
*जिन जातकों की कुंडली में पित्र दोष जैसी समस्या है उन सब से मेरा निवेदन है कि दान पुण्य के साथ- साथ आपके जीवित माता-पिता को सम्मान दें इससे आपका पित्र दोष का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।*
ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी
8395806256