धर्म-संस्कृति

सावन में शिव पूजा व रुद्राभिषेक का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व:ज्योतिषाचार्य डॉ.मंजू जोशी

नैनीताल। श्रावण माह में शिव पूजा करने के परिपेक्ष में धर्म ग्रंथों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं।धार्मिक मान्यतानुसार श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था जिसमे निकले विष से सृष्टि को सुरक्षित करने हेतु भगवान शिव ने विषपान किया। और उन्हें नीलकंठ महादेव भी कहा जाने लगा। भोलेनाथ के कंठ में हो रहे विष के ताप को कम करने हेतु सभी देवताओं द्वारा जल व ठंडी वस्तुओं का अभिषेक किया गया । इसी कारण रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही व ठंडी वस्तुओं का विशेष स्थान हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि भगवान शिव के अधीन हो जाती हैं। अत: श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक,शिवार्चन,हवन,धार्मिक कार्य, दान,उपवास किये जाते हैआगे पढ़ें

Ad
फोटो ज्योतिषाचार्य डॉक्टर मंजू जोशी

ज्योतिषाचार्य डॉ.मंजू जोशी ने कहा कि शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव और माता पार्वती भू-लोक पर निवास करते हैं।कहा कि राजा दक्ष की पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जिया। देवी सती ने घोर तपस्या की तत्पश्चात उन्होंने हिमालय राज के घर पुत्री रूप में जन्म लिया जिनका नाम हिमालय राज ने पार्वती रखा। देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप वरण करने हेतु भगवान शिव की वर्षों तक कठोर तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की और देवी पार्वती को अपनी भार्या के रूप में पुन: वरण करने के कारण भगवान शिव को श्रावण मास अत्यंत प्रिय हैं। मान्यता हैं कि श्रावण मास में भगवान शिव ने धरती पर आकर अपने ससुराल में विचरण किया था जहां अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में रुद्राभिषेक का महत्व बताया गया हैं।आगे पढ़ें

यह भी पढ़ें 👉  जिला स्तरीय खेल महाकुंभ के रविवार का परिणाम

रुद्राभिषेक का वैज्ञानिक महत्व। श्रावण मास में शिवलिंग पर जल अर्पित करने के पीछे धार्मिक ही नहीं अपितु वैज्ञानिक कारण भी है। हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का रूप इसलिए दिया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी शिवलिंग पर दूध, जल एवं तरल पदार्थ अर्पित किए जाते हैं जिससे कि रेडियो एक्टिव रिएक्टर्स को समाप्त किया जा सके और वह शांत रहें। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र,आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले पदार्थ है। शिवलिंग पर चढ़ा जल भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है। तभी हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगा। श्रावण मास में दूध से शिव को अभिषेक किया जाता है व दूध,दही का सेवन न करने की सलाह दी जाती है। जिससे कि मौसमानुसार शरीर में वात और कफ न बढे जिससे हम निरोगी रहे ऐसा आयुर्वेद विज्ञान में कहा गया है।

Quis autem vel eum iure reprehenderit qui in ea voluptate velit esse quam nihil molestiae consequatur, vel illum qui dolorem?

Temporibus autem quibusdam et aut officiis debitis aut rerum necessitatibus saepe eveniet.

About

Kumaun vani (कुमाऊं वाणी) देवभूमि उत्तराखंड के कुमांउ व गढ़वाल के गांव-गधेरों की समस्याओ, ताजा खबरों व विलुप्त हो रही कुमांउनी व गढ़वाली संस्कृति को उजागर करने का एकमात्र डिजिटल माध्यम है। अतः आप भी अपने विचार व अपने क्षेत्र की समस्याओं व समाचारों को प्रकाशित करने के लिए हमसे [email protected] तथा दूरसंचार व व्हाट्सएप नम्बर 8171371321 पर सम्पर्क कर सकते है।

(खबरों की विश्वसनीयता ही हमारी पहचान है)

संपादक –

नाम: हिमानी बोहरा
पता: मझेड़ा, नैनीताल, उत्तराखण्ड
दूरभाष: +91 81713 71321
ईमेल: [email protected]

© 2022, Kumaun Vani (कुमाऊँ वाणी)
Get latest Uttarakhand News updates in Hindi
Website Developed & Maintained by Naresh Singh Rana
(⌐■_■) Call/WhatsApp 7456891860

To Top

You cannot copy content of this page