शिक्षा

कविता:मां ऐसा कैसे कर लेती है:कवियत्री सुहानी जोशी

वो बिल्कुल ऐसे गढ़ जाती है,जैसे वो पूरी अनपढ़ हो,जो जानती भी न हो दुःख जैसे वो कोई सुखनवर हो।।जिसके अहसास जिंदा है,कहीं मेरे आस-पास भटकते,जिसकी छुअन से शब्द भी भाव की भांति लगते।।वो बिल्कुल ऐसे दिखलाती है,जैसे वो मोम नहीं,लौह हो.!वो जाने कैसे सुलझा लेती है,मेरे भीतर ऊहापोह को।।जो खुद अनपढ़ सी गढ़ जाती है,पागल सी बन जाती है।वो कोई कविता बन सिरहाने मुस्कुराती है।मां ऐसा कैसे कर लेती है, मां ऐसा कैसे कर लेती है।।

यह भी पढ़ें 👉  पितृपक्ष प्रारंभ: तर्पण व पिंडदान की पूरी कहानी ज्योतिषाचार्य डॉ.मंजू जोशी की जुबानी
To Top

You cannot copy content of this page