भीमताल। आज 9 नवंबर को राज्य का 22 वां स्थापना दिवस भले ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। लेकिन धरातल की बात करें तो राज्य बनने के बाद से लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी कई गांव पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित हैं। ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं के अभाव में संघर्षपूर्ण जीवन जीने को मजबूर हैं। गांवों की ऐसी स्थिति देखकर राज्य आंदोलनकारी भी मायूस हैं, उनका कहना है कि जिस स्वप्न को लेकर राज्स निर्माण की उन्होंने लड़ाई लड़ी थी, वह अभी अधूरा ही है। आगे पड़े…
जिले की भीमताल विधानसभा के रामगढ़, धारी, ओखलकांडा व भीमताल ब्लॉक के कई गांवों में सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई है, वहीं, जहां मोटर मार्ग हैं तो वे भी जर्जर हालत में हैं। यही नहीं डिजिटल इंडिया के दौर में ओखलकांडा ब्लॉक के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी दूरसंचार की कोई व्यवस्था नहीं हैं। जिससे अब धीरे-धीरे लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, लोग गांवों के अपने घर छोड़कर शहरों में किराये पर रहने को मजबूर हो गए हैं। कई गांवों में तो बुजुर्ग ही रह गए हैं, उनकी देखभाल को कोई नहीं है। उनका कहना है कि अगर ऐसे ही रहा तो आने वाले कुछ सालों में गांव पूरी तरह से खाली हो जाएंगे। आगे पड़े….
नेताओं को पांच सालों में आती है गांव की याद…भीमताल के ग्रामीणों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों द्वारा ग्रामीणों की सुध नहीं ली जाती है, चुनाव के समय हर कोई नेता गांव में पहुंचते हैं और विकास कार्यों को लेकर आश्वासन देकर चले जाते हैं, लेकिन फिर पांच साल तक कोई भी नजर नहीं आता है। जन प्रतिनिधि ग्रामीणों के अधिकारों और उनकी समस्याओं को आगे तक नहीं पहुंचा रहे हैं। राजनीति के नाम पर केवल स्वार्थ सिद्ध कर ग्रामीणों से छलावा किया जाता है।आगे पड़े….
उप मंडी का सपना भी सपना बनकर रह गया…भीमताल विधानसभा के चारों ब्लॉक में काफी संख्या में फलों व फसलों की पैदावार होती है। बीते कई वर्षों से काश्तकार क्षेत्र में एक उप मंडी खोले जाने की मांग कर रहे हैं, जिस पर आज तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। काश्तकारों का कहना है कि उप मंडी नहीं होने के कारण काश्तकारों को अपने फलों व फसलों को बेचने के लिए हल्द्वानी जाना पड़ता है, जिसमें काफी लागत लग जाती है, ऐसे में कई बार काश्तकारों को उनकी लागत का पैसा भी नहीं मिल पाता है। इसलिए क्षेत्र में ही एक उप मंडी की मांग कई वर्षों से की जा रही है। इससे उनको पैदावार का अच्छा मुनाफा मिल सकता है।आगे पड़े….
पूरन चंद्र बृजवासी, समाजसेवी भीमताल। जिस कल्पना के साथ एक अलग राज्य की चाह पहाड़ की जनता ने की थी। आज 22 साल पूरे होने के बाद भी अधूरी है। पहाड़ का जवान, किसान अपने हक के लिए संघर्ष कर रहा है। कई गांव सड़कों से वंचित है। बेरोजगारी, पलायन दर लगातार बढ़ती ही जा रही है। वहीं, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए आज भी पहाड़ का व्यक्ति संघर्ष कर रहा है। पहाड़ के किसान को मंडी व सड़कों की कमी से पूरा मेहनताना नहीं मिल पा रहा है। दिनों-दिन किसान कर्ज में डूब रहा है। सरकार को विषम भौगोलिक क्षेत्र वाले उत्तराखंड राज्य के लिए सम सरल और विकासशील उन्नत नीति बनाकर राज्य को सक्षम बनाने की जरूरत है।आगे पड़े
रमेश टम्टा समाजसेवी, धारी। जब से उत्तराखंड राज्य बना है, भीमताल में कोई भी बड़ा विकास कार्य नहीं किया गया। जब हमारा राज्य उत्तर प्रदेश के अधीन था, तब से अभी तक कुछ गांव सड़कों की मांगे कर रहे हैं, जो राज्य बनने के इतने सालों बाद भी अभी तक पूरी नहीं हुई है। स्वास्थ्य व शिक्षा सेवायें बदहाल हैं। स्कूलों की कमी के कारण आज भी बच्चों को कई किमी पैदल दूरी तय कर स्कूल जाना पड़ता है। अस्पताल नहीं होने से बीमार लोगों को डोली के सहारे अस्पताल तक पहुंचाया जाता है। वहीं सड़कों के अभाव में काश्तकारों की सब्जियां व फल खेतो में ही खराब हो जाती है। भीमताल क्षेत्र का विकास सिर्फ कागजों पर है, धरातल पर नहीं।