कुमाऊँ

पत्रकारिता दिवस पर रचनाकार भुवन बिष्ट की रचना: “चले लेखनी सदा ही ऐसी”

चले लेखनी सदा ही ऐसी, अंधियारा ही मिट जाये।

फैला दो प्रकाश सदा तुम, कोहरा जिससे छंट जाये।

सत्य पथ पर रहें अडिग,साहस की जयकार चुुनो।

पावना पवित्र यह स्वतंत्र,लेखनी की ललकार सुनो। 

सच्ची लेखनी के प्रभाव से, सिंहासन भी हिल जाये।

बिनते कूड़ा नन्हे हाथों को,बस्ता कलम भी मिल जाये।

प्रहार बुराई पर कर दो, खोया बचपन भी मिल जाये।

चले लेखनी सदा ही ऐसी,अंधियारा ही मिट जाये।।

सत्य पथ पर रहें अडिग,साहस की जयकार चुुनो।

पावना पवित्र यह स्वतंत्र,लेखनी की ललकार सुनो। …

राजा रंक का भेद यहां पर, लेखनी से भी कट जाये।

डिगे न पग विपदा में कभी,साहस सदा ही मिल जाये।

जाति – धर्म का भेद न हो, ऊंच नीच की हो न भावना।

सदा आपसी भाईचारे की,एकता की करते सदा कामना। 

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सत्य पथ पर रहें अडिग,साहस की जयकार चुुनो।

पावना पवित्र यह स्वतंत्र,लेखनी की ललकार सुनो। 

मातृभूमि की सेवा में हम, आओ एकता दिखलायें।

भारत माता की सेवा में,सच्चे वीर सपूत हम बन जायें।

भारत भू सदा सेवा में तेरी, जीवन यह अर्पित हो जाये।

बनकर कलम के सच्चे सिपाही,आओ सेवा में डट जायें।

सत्य पथ पर रहें अडिग,साहस की जयकार चुुनो।

पावना पवित्र यह स्वतंत्र,लेखनी की ललकार सुनो। 

                              रचनाकार -भुवन बिष्ट

                             (रानीखेत), उत्तराखण्ड

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