नैनीताल। पुराणों में वर्णित है कि अत्रि, पुलस्तय पुलह ऋषियों ने इस घाटी में तपस्या करते हुए तपोबल से मानसरोवर का पानी खींचा। नैनीझील के जल को मानसरोवर की भांति पवित्र माना गया है। झील के किनारे स्थित श्री मां नयना देवी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें भगवान शिव को आमंत्रित नही किया। इस बात से खिन्न होकर अगले जन्म में भी शिव की पत्नी बनने की कामना के साथ देवी सती ने यज्ञ कुंड में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। इस भयानक घटना ने स्तब्ध और दुखी होकर भगवान शिव अपने सारे कर्तव्यों से विमुख होकर देवी सती का पार्थिव शरीर अपने कंधे पर टांगे ब्रह्मांड में भटकने लगे। सृष्टि का संतुलन बिगड़ने से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तब सृष्टि के संरक्षक भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया और देवाधिदेव शिव को इस दुस्सह यातना से मुक्ति दी। महादेवी सती के शरीर के अंग जहां जहां गिरे, कालांतर में वहा शक्तिपीठ बन गए। वही नैनीताल में देवी सती की बाई आंख गिरी जो एक रमणिक सरोवर में रूपांतरित हो गई।आगे पढ़ें
उन्नीसवीं शताब्दी में नैनीताल की खोज होने पर स्थानीय निवासी मोती लाल शाह द्वारा सरोवर के किनारे श्री नयना देवी मंदिर का निर्माण करवाया गया। दुर्भाग्यवश 1880 के भूस्खलन में यह मंदिर नष्ट हो गया। बताया जाता है कि मां नयना देवी ने मोतीलाल शाह के पुत्र अमरनाथ शाह को स्वप्न में उस स्थान का पता बताया जहा उनकी मूर्ति दबी हुई थी। तब अमरनाथ शाह द्वारा देवी की मूर्ति का उद्धार किया और नए सिरे से मंदिर का निर्माण किया। तथा 1883 में मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ। अमरनाथ शाह के बाद उनके पुत्र उदयनाथ और फिर उनके प्रपौत्र राजेंद्रनाथ शाह मंदिर की देखरेख करते रहे।लेकिन 21 जुलाई 1984 को मां नयना देवी मंदिर अमर उदय ट्रस्ट’ का गठन होने के पश्चात मंदिर की व्यवस्था न्यास के हाथ में आई।तब से मंदिर की देखरेख ट्रस्ट द्वारा की जा रही है। मुस्कान यादव नैनीताल