धर्म-संस्कृति

“न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जांछी मैत की” कुमाऊं में भिटौली की मार्मिक कहानी

उत्तराखण्ड में चैत (चैत्र) का महीना लग गया है. कुमाऊं में चैत के महीने में विवाहित बहनों व बेटियों को भिटौली देने की विशिष्ट सांस्कृतिक परम्परा है. चैत के पहले दिन बच्चे फूलदेई का त्यौहार मनाते हैं लेकिन यह महीना मुख्य रूप से विवाहित बहन-बेटियों को भिटौली देने का है. भिटौली का शाब्दिक अर्थ भेंट देने से है।
भिटौली की कहानी
भिटौली की परम्परा के बारे में कुमाऊं में कई लोक कथाएं प्रचलन में हैं. एक लोक कथानुसार सैकड़ों वर्ष पहले की बात है एक गांव में एक महिला रहती थी. उसके पति की मौत हो चुकी थी. उसकी लड़की का दूर के गांव में विवाह हो गया था. विवाह के समय लड़की का भाई काफी छोटा था. विवाह के बाद कई साल तक लड़की के मायके से कोई भी उसकी खोज-खबर लेने नहीं गया. लड़के के बड़े होने पर एक दिन उसकी मां ने बताया कि उसकी दीदी का विवाह काफी दूर हुआ है और शादी के बाद हम उसकी खोज-खबर लेने भी नहीं जा सके, पता नहीं वह किस हाल में होगी? बीते वर्षों में कितने तीज-त्यौहार गए पर कभी भी उसे न तो मायके बुला सके और न ही उसके ससुराल ही जा सके. इतना कहते ही बेटी की याद में मां फफक-फफक कर रोने लगी तभी  उसके 10 वर्षीय बेटे कहां दीदी का ससुराल में जाऊंगा उसकी खोज-खबर करने पर बेटे की उम्र छोटे होने के चलते मां ने उसको मना कर दिया। लेकिन बेटे के मन में अपनी दीदी से मिलने की इच्छा दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी. वह हर रोज अपनी मां से दीदी से मिलने के लिए जाने को कहने लगा. लड़के की जिद के आगे एक दिन मां ने भी हार मान ली और उसने अपने बेटे को लड़की के ससुराल जाने की अनुमति दे दी. वह अपने बेटे को इतने वर्षों के बाद बेटी के ससुराल भेज रही थी तो खाली हाथ कैसे भेजती? तब उसने अपनी बेटी के लिए कई तरह के पकवान बना कर भेजने का मन बनाया और अपने बेटे से कहा कि वह कल सवेरे जल्दी उठ जाय ताकि वह सवेरे-सवेरे अपनी दीदी से मिलने चल दे. जिससे वह दोपहर तक वहां पहुंच सके क्योंकि शाम तक उसे लौट कर भी आना है.

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दूसरे दिन एक पोटली में बेटी के लिए तरह-तरह के पकवान उस महिला ने बांधे और साथ में एक नई धोती भी बेटी के लिए रख दी. चलते हुए उसने अपने बेटे को हिदायत दी कि अपनी दीदी से मिलकर समय से वापस घर को लौट आना और उसका बेटा अपनी दीदी से मिलने उसके ससुराल पहुंच गया। तो उसकी दीदी खेतों में काम करने के बाद थक कर घर में सो चुकी थी लड़के ने अपनी दीदी को बहुत आवाज लगाई परवाह नहीं उठी, उसने सोचा कि थोड़ी देर में जब उसकी दीदी की थकान दूर हो जाएगी तो वह अपने आप ही उठ जाएगी. यह सोचकर उसने अपनी दीदी के सिरहाने पकवानों की पोटली (भिटौली) रखी और बाहर बैठ गया।
लेकिन दोपहर ढलने के बाद भी उसकी नींद नहीं खुली तो लड़के ने भारी मन से बिना अपनी दीदी से मिले ही घर वापस लौटने का निर्णय किया. वह भिटौली की पोटली अपनी दीदी के सिरहाने ही छोड़कर भारी मन से घर वापस लौट गया।

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लेकिन जब देर शाम को विवाहिता लड़की की आंखें खुल गई. जब उसकी आंख खुली तो उसने सिरहाने में रखी पोटली देखी. जब उसने उसे खोला तो उसमें कई तरह के पकवानों के साथ एक नई धोती भी थी. उसे अपना सपना सच होता हुआ महसूस हुआ. भाई से मिलने की आस में उसने पहले घर के अन्दर उसे ढूंढा. जब वह नहीं मिला तो वह घर के बाहर निकली और उसे चारों ओर देखने लगी. पर उसका भाई कहीं नहीं दिखाई दिया. उसने सोचा कि शायद उसे सोता हुआ देखकर वह खेतों की ओर न चला गया हो. उसने अपने भाई को जोर-जोर से आवाज लगाई. पर वह कहां से आता? वह तो अपनी दीदी से बिना मिले ही निराश होकर घर वापस लौट चुका था.

काफी देर तक आवाज लगाने के बाद भी जब भाई कहीं नहीं दिखाई दिया तो वह लड़की जोर-जोर से रोने लगी. उसके रोने की आवाज सुनकर गांव के लोग उसके घर की ओर दौड़ पड़े, यह सोचकर कि पता नहीं उस पर क्या मुसीबत आ गई है. गांव वाले जब उसके घर पहुंचे तो उससे पूछने लगे कि वह क्यों रो रही है? उसे क्या हुआ है? उसने जोर-जोर से रोते हुए कहा,”भै भुको, मैं सिती”, “भै भुको,मैं सिती” (भाई भुखा ही रहा और मैं सोती रही). ऐसा कहते-कहते और जोर-जोर से रोते हुए उसने अपने घर के आंगन में प्राण त्याग दिए। वह लड़का अपनी दीदी से मिलने के लिए चैत के महीने ही गया था. बाद में गांव वालों व दूसरे लोगों को जब वास्तविकता का पता चला तो उन्हें बहुत ही दुख हुआ. कहते हैं कि उसके बाद ही हर साल चैत के महीने में विवाहित बहन व बेटियों को भिटौली देने की परम्परा की शुरुआत हुई ताकि इसी बहाने मायके वाले दूर-दराज बिवाई गई बहन-बेटियों की कम से कम साल में एक बार तो खोज-खबर ले सकें और उनके लिए भिटौली भी लाएं।

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