नैनीताल। बुधवार को हर्षोल्लास के बीच माँ नंदा सुनंदा को भावभीनी विदाई दी गई। सात दिनों तक चले धार्मिक अनुष्ठानों के बीच बुधवार को मां नंदा-सुनंदा की विदाई पर सभी श्रद्धालु भावुक नजर आए। समूचे उत्तराखंड में मां नंदा सुनंदा कुलदेवी के रुप में पूजी जाती हैं,शक्तिस्वरूपा मां को यहाँ बेटी के रुप में भी पूजा जाता है। मां नंदा सुनंदा की विदाई वैसे ही की जाती है।जैसे बेटी को डोली में बिठाकर विदा किया जाता है। 121वें नंदा महोत्सव के समापन के मौके पर बुधवार एकादशी को नयना देवी मंदिर परिसर में पंडित भगवती प्रसाद जोशी के द्वारा सुबह 6 से 9 बजे तक महा भगवती पूजन तथा दोपहर 12 बजे देवी भोग लगाया गया। एक बजे मां नंदा सुनंदा की नगर में शोभायात्रा निकाली गयी।शाम 6 बजे ठंडी सड़क के समीप मां नंदा सुनंदा की मूर्ति का विसर्जन कर उन्हें भावपूर्ण विदाई दी गयी।आगे पढ़ें….
बुधवार सुबह से ही मंदिर में भक्तों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया था।पूजा अर्चना तथा मंदिर में मां नंदा सुनंदा के डोले की परिक्रमा करने के बाद मस्जिद गाड़ी पड़ाव,लोवर मॉल रोड होते हुए तल्लीताल बाजार, वैष्णो देवी मंदिर कैंट के बाद अपर मॉल रोड होते हुए चीना बाबा से रामसेवक सभा के बाद जयलाल साह बाजार तक मां नंदा सुनंदा के शोभा यात्रा निकाली गई इस दौरान नैनीताल,पंगुट,गरमपानी,खैरना,बेतालघाट,भवाली, भीमताल, हल्द्वानी आदि क्षेत्रों से पहूंचे हज़ारों की संख्या में श्रद्धालुओं व पर्यटकों द्वारा सड़क के दोनों ओर खड़े होकर मां के जयकारे लगाते हुए मां नंदा सुनंदा को भावपूर्ण विदाई दी गई।शोभा यात्रा के दौरान मां नंदा-सुनंदा के डोले के आगे व पीछे भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु जयकारे लगाते हुए चल रहे थे।इस मौके पर छोलिया दल द्वारा कुमांउनी संस्कृति का प्रदर्शन किया तथा अखाड़े के सदस्यों द्वारा हैरतंगेज करतब दिखाए गए वही बैंड के धुनों पर श्रद्धालुओं को मां की भक्ति में झूमने पर मजबूर कर दिया। और शाम को मंदिर के समीप नैनीझील में मां नंदा-सुनंदा की मूर्तियों को विसर्जित कर दिया गया। आगे पढ़ें…..
24 कैरेट शुद्ध सोने के गहने पहनाए गए थे मां नंदा सुनंदा को।दुल्हन की तरह सजी मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं को 24 कैरेट शुद्ध सोने के 10 से 12 तोले सोने से बने नथ, मांग टीका, मंगलसूत्र व कुंडल आदि सोने के जेवर पहनाए गए थे। मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाएं ईको फ्रैंडली होती हैं। क्योंकि इन प्रतिमाओं का विर्सजन नैनी झील में किया जाता है। पर्यावरण संरक्षण व धार्मिक मान्यताओं के चलते प्रतिमाओं को ईको फ्रैंडली बनाया जाता है। श्रंगार सामग्री व रंग प्राकृतिक होते है। प्रतिमाओं में उपयोग आने वाली हर वस्तु पानी में घुलनशील होती है।