कुमाऊँ

कुमाऊनी रचना- क्वें निं बचीं मिं हैबे मैं भ्रष्टाचार छूँ 

आज सबूंक मैं आधार छूँ,

कैंक मिं व्यापार छूँ।

क्वें निं बचीं मिं हैबेर,

मैं भ्रष्टाचार छूँ।…….

ठुल ठुल क्वें काम कराण हो,

या नान नान क्वें काम हो।

बिन मैंक भोग लगायै,

बिन जेबन हाथ डालियै।

क्वें मुखौड़ चाहूं तैयार निं छूँ,

हर कामौक में आधार छूँ,

मैं भ्रष्टाचार छूँ।……

अन्यार कैं उज्याव,

उज्याव कैं अन्यार कर दिनूँ।

बैठि बैठियै जेब भरिं दिनूँ,

उलट पुलट भौत करिं दिनूँ।

रंक कैं मैं राज बणैं दिनूँ,

पैदल हिटणी कैं जहाज दीं दिनूँ।

घूसखोरूक हरिया सार छूँ,

बेमानूंक मैं व्यापार छूँ।

मैं भ्रष्टाचार छूँ।……

गौंनूमें,   घरूमें,  शहरूमें,

आफिस में, बाजारक गलियों में।

बेईमानोंक तन में, कामचोरूक मन में,

लुकाई पैंस में, भ्रष्ट मैंस में।

मैं इथां उथां, वार पार छूँ,

घोटाला म्यौर अधिकार छूँ।

मैं भ्रष्टाचार छूँ।….

यह भी पढ़ें 👉  नैनीताल बैंक के सहयोग से रामलीला मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रमो का विधायक सरिता ने किया उद्धाटन

मैं एक प्रकारक दौकार छूँ,

भ्रष्ट मैंसों ठुल भकार छूँ।

जाधैं खाणौक हंकार छूँ,

गरिंबूक असाण छूँ।

विकासौक मसाण छूँ,

कंस, रावण , दुर्योधन,

सबूंमें म्यौर प्राण छूँ।

अत्याचार, दुराचार, व्यभाचार,

इनौर मैं अवतार छूँ।

मैं भ्रष्टाचार छूँ।….

ईमानदार तुम है जाओ,

पवित्रता आपण आपण मन में लिं आओ।

भारत लै खुशहाल बण जांल,

घर घर सबूंक समृद्ध है जांल।

मैं मनौंक एक दौंकार छूँ।

सच्चाई पवित्रता जब ऐ जाली,

तब मैं जाहूँ तैयार छूँ,

मैं भ्रष्टाचार छूँ।…..

क्वें निं बची मिं हैबेर,

मैं भ्रष्टाचार छूँ।।…….

                 रचनाकार- भुवन बिष्ट

                मौना, (रानीखेत), उत्तराखंड

To Top

You cannot copy content of this page