उत्तराखंड राज्य बने 23 साल हो गए हैं। जिसके बाद विकास तो दूर की बात,लगातार पलायन की रफ्तार तेज होती जा रही है।उत्तराखंड प्रथक राज्य के लिए लोगों ने 26 साल तक लड़ाई लड़ी। राज्य को अलग करने की मांग में बहुत से लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगाई,उन शहीदों व आंदोलनकारियों का एक सपना था कि वे उतराखड प्रथक राज्य बनाकर पर्वतीय क्षेत्रों का बिकास व शिक्षा,स्वास्थ्य,के लिए एक पहचान बनायेंगे। लेकिन 23साल होने के बाबजूद पलायन नहीं रुक पाया है।आगे पढ़ें….
सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी ने बताया उत्तराखंड के पौड़ी,अल्मोड़ा,चमोली,टेहरी,नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़ आदि पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा पलायन हो रहा है।इस पलायन के कारण गांव,के गांव सुनसान होते जा रहे हैं। कहा कि पलायन व बेरोजगारी से लोग परेशान तो थे ही। बीते कुछ सालों से पर्वतीय क्षेत्रों में एक तरफ पलायन की रफ्तार दूसरी तरफ जंगली जानवरों व बंदरों के आतंक से भी पलायन बड रहा है।छोटे,मोटे किसान अगर अपनी दिनचर्या के लिए खेती करते हैं तो बंदर व जंगली सुअरों ने खेती करना मुश्किल कर दिया।कुछ गांवों के ग्रामीणों की महिलाएं जंगलों से घास काटकर गया भैंस पालती तो आये दिन बाघ का आतंक गरीब परिवार की महिलाओं का जंगलों से घास लाकर गाय भैंस पालकर दिनचर्या चलाने में बाघ के आतंक कारण डर का भय बना है। अगर बाघ का आतंक कम नहीं हुआ इधर किसानों की खेती केलिए बन्दर व जंगली सुअरों के नकसुवान में कमी नहीं हुई तो आने वाले भविष्य में जो गांव बचें है व भी पलायन हो सकता है।