नैनीताल। सरोवर नगरी नैनीताल में होली महोत्सव के दौरान नगर में विभिन्न संगठनों द्वारा होली महोत्सव का आयोजन किया गया था। वहीं, श्री राम सेवक सभा,लेक सिटी वेलफेयर,आदि संस्थाओं द्वारा आयोजित होली महोत्सव के दौरान धीरे-धीरे विलुप्त हो रही कुमाऊंनी संस्कृति को महिला होली दलों द्वारा उजागर किया जा रहा है। कुमाउं में सुहाग का प्रतीक माने जाने वाला गोलबंद व पिछोड़ा अब प्रचलन में काफी कम दिखाई देता है। केवल शादी समारोह व धार्मिक अनुष्ठानों में ही अब गोलबंद व पिछोड़े पहनी हुई महिलाएं दिखाई देती है। गोलबंद तो अब प्रचलन से समाप्ति की कगार पर पहुंच चुका है, जिसकी जगह अब लॉकेट ने ले ली है। हालांकि अभी भी बुजुर्ग महिलाएं पारंपरिक परिधानों व आभूषण पहनी हुई दिखाई देती है। लेकिन अब नई पीढ़ी धीरे,-धीरे इनसे दूर होती जा रही है। महिला होली दलों द्वारा कुमाऊंनी संस्कृति, परिधानों व आभूषणों के संरक्षण का संदेश दिया जा रहा है।
महिला होलियार हेमा मेहरा ने बताया कि हमारे कुमाऊं की विरासत संस्कृति को अब युवा पीढ़ी धीरे-धीरे भूलती जा रही है।कहा कि आज के युवाओं को ग्लोबन्द के बारे में जानकारी भी नही होगी। क्योंकि अब हम लोगों ने खुद ही इसको पहनना बंद कर दिया है। इसलिए कम से कम हमें अपने बच्चों को अपनी संस्कृति की जानकारी तो अवश्य देनी चाहिए।आगे पड़े…..
महिला होलियार कंचन रावत का कहना है कि ग्लोबन्द पूरे सोने का होता है और अब सोने के दाम काफी महंगा हो चुका है। इसलिए अब महिलाओ ने गलोबंद की जगह लॉकेट या बनावटी ग्लोबन्द पहनना शुरू कर दिया है। जबकि ग्लोबन्द के मुताबिक लॉकेट काफी कम दामों में बन जाता है। इसलिए भी ग्लोबन्द अब प्रचलन से दूर होते जा रहा है।