एक सपना लेकर आयी थी मैं तेरे शहर में
मुझे धक्का दे दिया गया मौत की नहर में।
रसूखदारो के कदमो की रहती है यहाँ आहट
रात त छोड़ो मैं सुरक्षित नही भरी दोपहर में।
नन्हे पंखों से आसमान छूने का अरमान था
पर कैसे उड़ पाती तेरे फैलाये इस जहर में।
क्या मेरी मां के सिवा कोई मेरे लिए रोया होगा
क्या माँ की आवाज दफन हो गयी उनके कहर में।
काश मैं जिंदा रहकर भेद खोल पाती उनके
कोई और बेटी नही मरती नदी की इस लहर में।