प्रथम हिन्दी खडी बोली के कवि गुमानी पंत की है जननी
पवित्र रामगंगा और सरयू नदी के बीच शैल पर्वत पर बसा उत्तराखंड के कुमाऊं का गंगोलीहाट एक धार्मिक स्थल है. बिहंगम हिमाद्री पर्वत मालाओं से घिरा गंगोलीहाट धार्मिक पर्यटन के लिहाज से काफी सहायक हो सकता है. यहां स्थित मां भगवती महाकाली की रणभूमि के अवशेष आज भी अपनी गौरव गाथा कहते प्रतीत होते हैं. इसके साथ ही यह प्रथम हिन्दी खडी बोली के कवि गुमानी पंत की जननी भी रही है.
कुमाऊं के इस सुंदर नगर गंगोलीहाट के चारों ओर देवदार, बांज, बुरांश आदि सहित चौड़ी पत्तीदार पेड़ पौधों की एक घनी श्रृंखला मौजूद है. इन वानस्पतिक औषधीय पेड़ पौधों से शोभायमान गंगोलीहाट की अजब तस्वीर निहारते ही बनती है. ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व की 22 से भी ज्यादा गुफाओं की भूमि गंगोलीहाट को यूं ही गुफाओं की महानगरी नहीं कहा जाता. यहां स्थित भोलेश्वर-कोटेश्वर- शैलेश्वर-मुक्तेश्वर-महेश्वर-डांडेश्वर-शिलादेबी-दानेश्वर-मैलचौरा- सिंकोटेश्वर-विगुतग-लटेश्वर- महाकालेश्वर जैसे पवित्र गुफाओं को आज भी गुमनामी के अंधेरों में सिमटा हुआ है. प्राकृतिक संपदा से लेकर हर लिहाज से गंगोलीहाट धार्मिक सहित साहसिक पर्यटन की असीम संभावनाओ को समेटे हुए है. पर इसको लेकर ईमानदारी से कार्य किए जाने की जरूरत है. सरयू और रामगंगा की पवित्र माटी गंगावली की पवित्रता को समेटे गंगोलीहाट ऐतिहासिक महत्त्व का वह धार्मिक स्थल है जहां पर्यटक एक बार आ जाए तो बार बार पहुंचने की बात करता है।
मदन मोहन जोशी की कलम से