14 अप्रैल डॉ अंबेडकर जंयती के मौके पर विश्वविख्यात वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार द्वारा अपने सोशल मीडिया के जरिए संदेश देते हुए कहा है कि डॉ अंबेडकर को लेकर चर्चा केवल जयंती और पुण्यतिथि पर ही नहीं होती। वे साल भर किसी न किसी बहाने संविधान की बहसों में उपस्थित रहते हैं। बेशक चौदह अप्रैल के अवसर पर उनकी ज़िंदगी और सपनों को लेकर सक्रियता दिखती है मगर यह उसी दिन तक सीमित नहीं रहती है। आज उनके सपनों को उसी तरह रौंदा जा रहा है जिस तरह गांधी के सपनों को आज़ादी के समय ही रौंद दिया गया। संविधान की जिस किताब से देश में संस्थाएँ बनी हैं वो कमज़ोर हो चुके पन्नों की तरह बाहर आ रही हैं। संविधान की किताब अपनी जगह पर रखी नज़र आती है ठीक उसी तरह से जैसे पुस्तकालय में रखी असंख्य किताबें नज़र आती हैं। यही भरोसा है कि किताब को हटाया नहीं गया है। रैक पर रखी हुई किताब दिखाकर संविधान के सपनों को रौंदा जा रहा है। इसके बरक्स डॉ अंबेडकर के सपनों को उनके नाम पर होने वाले कार्यक्रमों में हस्तांतरित कर दिया गया है ताकि वहाँ आप पुस्तकालय में रखी किताब की तरह उनके सपनों का दर्शन कर सकें। शासन किसी की मर्ज़ी से चल रहा है और किसी के ख़िलाफ़ चल रहा है। सबके लिए नहीं चल रहा है। न्याय की परिभाषा राजनीतिक होती जा रही है। संवैधानिक नहीं रही।
लेकिन रास्ता क्या है, एक रास्ता है आज के हालात को नए चश्मे से देखा जाए और उसमें से सुंदर भविष्य की कल्पना की जाए और दूसरा रास्ता है अतीत को ठीक से जान लिया जाए। लेकिन अतीत के मोह में पड़ने के लिए नहीं बल्कि इस वर्तमान से निकलने के लिए। बेहतर है आप थोड़ा डॉ अंबेडकर को जानने का प्रयास करें। उनकी मूर्ति और तस्वीर देखकर आपको लगता होगा कि सब जानते हैं लेकिन जब उनकी रचनाओं को पढेंगे और उन पर लिखी किताबों को पढेंगे तो लगेगा कि कितना कम जानते हैं।
में दो पतली किताबों का संदर्भ दे रहा हूँ। महँगी भी नहीं हैं और हिन्दी में हैं। एक किताब क्रिस्तोफ़ जाफ़्रलो की है जिसका अनुवाद योगेन्द्र दत्त ने किया है। यह किताब राजकमल से छपी है। 199 रुपये की है। दूसरी गेल ओमवेट की है जो पेंग्विन से छपी है। इसका अनुवाद डॉ पूरनचंद टंडन ने किया है। 150 रुपये की है। इन दो किताबों को पढ़ने से आप बेसिक जान पाते हैं जिसके बाद विस्तृत रूप से लिखी गई किताबों को पढ़ने और समझने में मदद मिलेगी। चौदह अप्रैल को बेशक दो मीम कम फार्वर्ड करें लेकिन डॉ अंबेडकर पर दो किताब पढ़ लें। देखिएगा आपको किताब पढ़ने में काफ़ी संघर्ष करना पड़ेगा। आज़मा लीजिए।
डॉ अंबेडकर के सपनो के साथ हो रहा है खिलवाड़:वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार
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