क्राइम

फूल देई-छम्मा देई, दैणी द्वार,भर भकार…….चैत्र माह में विवाहिता बेटियों को दी जाती है भिटौली..”न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जांछी मैत की”

नैनीताल। चैत माह शुरू हो चुका है, साथ ही हिंदु नव वर्ष का आगाज भी हो गया है।कुमाऊं में चैत के महीने में विवाहित बहनों व बेटियों को भिटौली देने की परम्परा है, आज चैत के पहले दिन बच्चे फूलदेई का त्यौहार मनाते हैं।लेकिन यह महीना मुख्य रूप से विवाहित बहन-बेटियों को भिटौली देने का होता है।फुलदेई पर्व इस त्योहार को फूल संक्रांति भी कहते हैं, इसका सीधा संबंध प्रकृति से है। इस समय पहाड़ो में चारों ओर हरियाली व फूल प्रकृति के यौवन में चार चांद लगाते हैं। हिंदू परंपरा में चैत्र माह से ही नव वर्ष होता है। इस नव वर्ष के स्वागत के लिए खेतों में सरसों खिली है तो पेड़ों में फूल भी आने लगे हैं। चैत्र माह के प्रथम दिन बच्चे लोगों के घरों में जाकर दहलीज पर फूल चढ़ाते हैं और सुख-शांति की कामना करते हैं। इसके एवज में उन्हें परिवार के लोग चावल व पैसे देते हैं। मान्यता है कि साल के प्रथम दिन बच्चे फूल देई-छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार..गीत गाकर लोगो को आशीर्वाद देते है।आगे पढ़ें….

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फूलदेई खेलते बच्चे
विवाहिता बेटी को भिटौली देने जाती महिला

न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जांछी मैत की” भिटौली की कहानी लोक कथानुसार सैकड़ों वर्ष पहले की बात है एक गांव में एक महिला रहती थी, उसके पति की मौत हो चुकी थी. उसकी लड़की का दूर के गांव में विवाह हो गया था,विवाह के समय लड़की का भाई काफी छोटा था, विवाह के बाद कई साल तक लड़की के मायके से कोई भी उसकी खोज-खबर लेने नहीं गया,लड़के के बड़े होने पर एक दिन उसकी मां ने बताया कि उसकी दीदी का विवाह काफी दूर हुआ है और शादी के बाद हम उसकी खोज-खबर लेने भी नहीं जा सके, पता नहीं वह किस हाल में होगी तो मां ने कई तरह के पकवान बनाकर चैत के माह में अपने बेटे को बेटी के ससुराल भेज दिया। अगले दिन उसका बेटा अपनी दीदी से मिलने उसके ससुराल पहुंच गया। तो उसकी दीदी खेतों में काम करने के बाद थक कर घर में सो चुकी थी लड़के ने अपनी दीदी को बहुत आवाज लगाई पर जब वह नही उठी तो उसने अपनी दीदी के सिरहाने पकवानों की पोटली (भिटौली) रखी और बाहर बैठ गया। लेकिन जब शाम तक भी उसकी दीदी नीद से नही जागी तो वह अपने घर लौट आया। लेकिन जब देर शाम जब वह उठी और सिरहाने में रखी पोटली देखी तो उसे अहसास हुआ कि उसका भाई ही आया था तो उसने अपने भाई को काफी खोजा,काफी देर तक आवाज लगाने के बाद भी जब भाई कहीं नहीं दिखाई दिया तो वह लड़की जोर-जोर से रोने लगी, उसके रोने की आवाज सुनकर गांव के लोग उसके घर की ओर दौड़ पड़े,गांव वाले जब उसके घर पहुंचे तो उससे पूछने लगे कि वह क्यों रो रही है।  उसने जोर-जोर से रोते हुए कहा,”भै भुको, मैं सिती”, “भै भुको,मैं सिती” (भाई भुखा ही रहा और मैं सोती रही). ऐसा कहते-कहते और जोर-जोर से रोते हुए उसने अपने घर के आंगन में प्राण त्याग दिए। कहा जाता है कि उसके बाद ही हर साल चैत के महीने में विवाहित बहन व बेटियों को भिटौली देने की परम्परा की शुरुआत हुई ताकि इसी बहाने मायके वाले दूर-दराज बिवाई गई बहन-बेटियों की कम से कम साल में एक बार तो खोज-खबर ले सकें और उनके लिए भिटौली भी लाएं।

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