ओखलकांडा नाई गांव निवासी पर्यावरण प्रेमी चंदन नयाल ने आज कहा कि पिछले कई वर्षों से इस बात से हम सब अवगत है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ऋतु परिवर्तन के चलते बढ़ते प्रदूषण के चलते वर्ष प्रति वर्ष विभिन्न प्रकार की आपदाओं का जन्म हुआ है और हो रहा है साथ ही जल संकट तेजी से बढ़ता जा रहा है इसका आभास सभी को है परन्तु इस पर चिंतन करने के सिवा और कोई उपाय है भी या नहीं ये हमको मनन करना चाहिए , दूर की नहीं अपने उत्तराखंड की जमीनी हकीकत पर आते हैं उत्तराखंड देवभूमि विभिन्न मां के रुप में पूजी जाने वाली नदियों वाला राज्य हिमालय से आच्छादित राज्य भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या की प्यास बुझाने वाला राज्य आज खुद उस राज्य के गाड़, गधेरे ,धारे,नौले,चुपटौले,सिमार,पोखर मरने की कगार पर है प्रकृति की सुन्दर छटा पेड़ पौधों जंगलों से आच्छादित राज्य होने के बाद भी ऐसा क्यों सवाल मन में उठता है मैं बताना चाहता हूं अगर पिछले 10 वर्ष की बात करें तो बहुत से जल स्रोत सूख चुके हैं नदियों का जल स्तर बहुत तेजी से गिरा है इसका कारण मुझे यह प्रतीत होता है कि जिस प्रकार लगातार चौड़ी पत्तियों के जंगलों का तेजी से दोहन ,चीड़ के जंगलों का तेजी से फैलना और लगातार प्रतिवर्ष जंगलों का आग से जल जाना ,जिस गति से ये सब कुछ हो रहा है अगर उस गति को नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले कुछ ही वर्षों में पहाड़ों में पानी खत्म हो जायेगा लोग शहरों की गर्मी से राहत पाने के लिए पहाड़ तो आयेंगे, पर उन्हें पानी नहीं मिल पायेगा, एक बार के लिए हिमानी नदियों में पानी रह सकता है। पर गैर हिमानी नदियों का जल स्तर खत्म हो जाएगा, यह कटु सत्य है ।कई क्षेत्रों में गधेरों से गाडियौं टैंकरों के माध्यम से पानी अभी से घरों तक पहुंचाया जा रहा है ।आने वाले समय पर क्या होगा ये हम खुद सोच सकते हैं पिछले चार वर्षों में हजारों हैक्टेयर भूमि कई बार जंगल की आग से जल चुकी है ,जिसका सीधा असर वन सम्पदा जीव जंतु और जल स्रोतों पर दिख रहा है जहां कहीं कुछ क्षेत्रों में बांज ,बुरांश,खरसू,पांगर, देवदार, काफल, खडीक,आंवला,अयार,लोद,फल्याट,रयाज, उतीश,म्हेल,तितमैय्या ,हिसालू ,किलमोडा ,मकई ,घिगारू आदि अन्य कई चौड़ी पत्तियों और झाड़ियों वाले पौधों के जंगल है वहां अभी जल स्तर उतना नहीं गिरा है वहां आग भी बहुत कम लगी हैं परन्तु जहां चींड बहुतायत मात्रा में है वहां जंगल तो खत्म हो ही चुके हैं और जल स्तर भी तेजी से गिर चुका है , चौड़ी पत्तियों के जंगलों की सूखी पत्तियों से जो खाद तैयार होती है वह मिट्टी को बहुत उपजाऊ बनाती है पहाड़ों में खेती कम होना यह भी एक मुख्य कारण है कि लोगों के खेतों में चीड़ के पत्तों की खाद डालकर खेत की उपजाऊ क्षमता कम हो चुकी है विभिन्न प्रकार के रोगो का जन्म हुआ है जिस कारण लोगों ने खेती छोड़ दी है चीड़ के जंगलों में जंगली जानवरों को खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलता इसी लिए जंगली जानवर भी तेजी से आबादी की ओर बढ़ रहे हैं , चीड़ के जंगलों में एक भी जल स्रोत नहीं होता और अगर होगा भी तो वो सूख जाता है ,जबकि चौड़ी पत्तियों के जंगलों में जल स्रोत होते हैं। और चौड़ी पत्तियों के जंगलों में जल संरक्षण करने की क्षमता होती है । चौड़ी पत्तियों के जंगलों में विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधे भी जन्म लेते है पर चींड के जंगलों में वो खत्म हो जाते हैं मेरे पिछले 10 वर्षों का अनुभव यही कहता है पहाड़ों में चीड़ को कम करना ही होगा सरकारी तन्त्र को बुरा जरूर लगेगा पर यही कड़वी हकीकत है जिस प्रकार तेजी से गर्मी बढ़ती जा रही है हिमालय पिघल रहा है वो दिन दूर नहीं जब हम बेरोजगारी ,महामारी से तो नहीं पानी के संकट से जरूर मर जायेंगे ।समय जा चुका है अब समय नहीं है चिंतन करने का मनन करने का अब समय है तो सिर्फ सरकारों को निर्देश देने का जमीनी स्तर पर कार्य करने का ,यहीं मेरा मानना है
दम तोड़ती नदियां और गाड़ गंधेरे: पर्यावरण प्रेमी चंदन नयाल
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