अलमोड़ा। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के तत्वावधान में संस्कृत भाषा के प्रचार, प्रसार, संरक्षण, संवर्धन एवं अनुसंधान हेतु रविवार को अल्मोड़ा जनपद द्वारा उत्तराखंड की संस्कृत नाट्यपरंपरा इस विषय पर व्याख्यान सत्र का आयोजन किया गया।
उक्त व्याख्यान सत्र में संपूर्ण देश से संस्कृत विद्वान् सहित संस्कृतानुरागी संस्कृत प्रेमी सम्मिलित हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ श्री कल्याणिका वेदवेदांग संस्कृत विद्यापीठ डोल अल्मोड़ा के ब्रह्मचारियों द्वारा वैदिक मंगलाचरण किया गया उसके पश्चात मां सरस्वती की वंदना रुद्रप्रिया जांगी ने प्रस्तुत की तत्पश्चात् अतिथियों का वाचिक स्वागत सहित परिचय कराया गया।
उक्त कार्यक्रम में कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में राजकीय महाविद्यालय शीतलाखेत अल्मोड़ा के प्राचार्य प्रो० लल्लन प्रसाद वर्मा उपस्थित रहे उन्होंने कहा की संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाना है संस्कृत का विज्ञान के साथ तादात्म्य संबंध है अतः सभी को मिलजुल कर संस्कृत के गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास करना होगा।मुख्य अतिथि के रूप में रानीखेत विधानसभा के माननीय विधायक डॉ० प्रमोद नैनवाल उपस्थित रहे उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा संस्कृत है लेकिन हमें संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रयास करना होगा हमारी संस्कृति, सभ्यता, विचार, संस्कार सभी संस्कृत भाषा में निहित है यह संस्कृत के पुनर्जागरण का काल है।
कार्यक्रम के विशिष्टतिथि के रूप में कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के संस्कृतविभाग की विभागाध्यक्षा प्रो० जया तिवारी उपस्थित रही उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि उत्तराखंड प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा की भूमि रही है संस्कारों की भूमि रही है यह देवभूमि है यहां चार धाम है जो कि हमें अपनी संस्कृति के प्रति चिंतन विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं उन्होंने उत्तराखंड की संस्कृत नाट्य परंपरा पर प्रकाश डालते हुए केदार पांडे विश्वेश्वर पांडे हरि नारायण दीक्षित का भी परिचय दिया और कहा कि इनका संस्कृत नाटकों की परंपरा में अभूतपूर्व योगदान है
एवं सरस्वतातिथि के रूप में हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आशुतोष गुप्त उपस्थित रहे उन्होंने कहा कि कालिदास के नाटक सबसे श्रेष्ठ नाटक हैं और यह हमें अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य करते हैं हमें मिल जुलकर संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए कार्य करना है हमें एक समूह में कार्य करना होगा सबके सहयोग से ही यह कार्य सफल हो सकता है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात संस्कृत वार्ता प्रवाचक संपादक अनुवादक आकाशवाणी नई दिल्ली से डॉ० बलदेवानंद सागर उपस्थित रहे उन्होंने उत्तराखंड की संस्कृत नाट्यपरंपरा का वर्णन करते हुए स्कंद पुराण का उल्लेख करके केदारखंड मानसखंड के बारे में बताया तत्पश्चात् उन्होंने कहा कि चन्द राजाओं के काल में भी संस्कृत जो है राजभाषा थी यहां के राजकाज के कार्य संस्कृत भाषा में किए जाते थे जो कि वर्तमान में हमारी भाषा को समृद्ध करने का एक संदेश देती है।
उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के शोधाधिकारी एवं राज्य संयोजक डॉ० हरीश चंद्र गुरुरानी ने उत्तराखंड संस्कृत अकादमी द्वारा संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए किया जा रहे कार्यों पर विस्तार से चर्चा कर अखिल भारतीय संस्कृत सम्मेलन, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन, संस्कृत व्याख्यान माला, संस्कृत छात्र प्रतियोगिता आदि का उल्लेख कर विस्तार से जानकारी दी।आगे पढ़ें
कार्यक्रम का संचालन जनपद संयोजक डॉ० प्रकाश चंद्र जांगी के द्वारा किया गया उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत सहित परिचय कराया और कार्यक्रम में उपस्थित रहने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया और संस्कृत नाट्य परंपरा पर प्रकाश डाला।
अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन सहसंयोजक श्री जगदीश चंद्र जोशी के द्वारा किया गया उक्त कार्यक्रम में विभिन्न अतिथि संस्कृत विद्वान उपस्थित रहे जिसमें डॉ० चंद्र प्रकाश उप्रेती डॉ० सीमा प्रिया डॉ० दीपिका आर्या डॉ० नवीन जसोला, डॉ० हेमंत जोशी, डॉ० जगदीश चंद्र जोशी डॉ० कंचन तिवारी डॉ कौशल किशोर बिजलवाण, रामबाबू मिश्रा डॉ० गोकुल तिवारी, भानु प्रकाश पांडे शांति प्रसाद, स्वामी विवेकानंद, चंद्र प्रकाश पांडे, डॉ० नवीन पन्त, उमा सैनी, महेश तिरवा, डॉ ० गीता शुक्ला, डॉ० आनंद जोशी भावना जोशी, बिना रानी, शोभा, श्वेता, साक्षी, कमला, राहुल बलोदी आदि मौजूद रहे।