उत्तराखण्ड

जलवायु परिवर्तन: “बेडु पाको बारोमासा,ओ नरेण काफल पाको चैता” गीत के बदले मायने..चैत में पकने वाला काफल पक गया है फाल्गुन में

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नैनीताल। जलवायु परिवर्तन का असर अब मौसम के साथ साथ ऋतुओ में भी दिखाई देने लगा है।जहां एक ओर इस बार बर्फवारी व बारिश बिल्कुल गायब है,तो वही उत्तराखंड के जंगलो मे पाए जाने वाला गुणकारी काफल समय से पहले ही तैयार हो चुके है।अप्रैल माह में पकने वाला काफल जलवायु परिवर्तन के चलते इस वर्ष फरवरी में ही पक चुका है।आगे पढ़ें

बेडु पाको बारोमासा,ओ नरेण काफल पाको चैता गीत के मायने बदल गए। विजेंद्र लाल साह ऒर मोहन लाल उप्रेती द्वारा लिखित प्रदेश का प्रदेश का हस्ताक्षर गीत “बेडु पाको बारोमासा..ओ नरेण काफल पाको चैता गीत” का मतलब होता था कि उत्तराखंड के जंगलों में पाया जाने वाला गुणकारी फल बेडु बारह महीने पकता है जबकि काफल चैत (अप्रैल) के माह में पकता है लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के चलते काफल भी अब फरवरी मार्च माह में ही पकने लगा है। जो कि  भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत नही माना जा रहा है।आगे पढ़ें

जलवायु परिवर्तन का ऋतुओं में भी पड़ा है असर।मौसम के जानकार स्थानीय नागरिक रमेश चंद्रा का कहना है कि वाहनों की अत्यधिक वृद्धि से  कार्बनिक कणों की मात्रा पर्वतीय क्षेत्रियों में बढ़ गई है। जिस कारण एक ओर दिन के तपमान में तेजी से वृद्धि हो रही है तो रात के तापमान में उतनी ही तेजी से गिरावट आ रही है। जिस कारण तापमान काफी हद तक अनियंत्रित हो चुका है। वहीं  सूर्य की रोशनी पड़ती है तो गर्मी का आभास बढ़ जाता है,और तापमान बढ़ जाता है,और जब बादल छाते हैं तो कार्बनिक कण ठंडे हो जाते हैं जिसके चलते तापमान में भी गिरावट आ जाती है। वही शीतकाल में सुखी ठंड में तापमान माइनस डिग्री तक पहुंच जाता है। जलवायु परिवर्तन का असर फूलों और फलों पर भी पढ़ने लगा है पतझड़ जो पहले अक्टूबर में हो जाता था वहीं अब नवंबर दिसंबर में हो रहा है। यह सारे परिवर्तन बीते 10 वर्षों के अंतराल में देखने को मिला है। इतना ही नही, पिछले 100  साल के अंतराल में नैनीताल के औसत तापमान मे दस डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई  है। जिसके चलते अब धीरे धीरे नैनीताल सहित हिमालयी क्षेत्रो के मौसम में भारी अंतर आने लगा है जिसका असर यह है कि बारिश ओर हिमपात इस वर्ष ना के बराबर हुवा है वही फल फूलों पर भी जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिखाई दे रहा है।आगे पढ़ें

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डॉक्टर नरेंद्र सिंह पर्यावरण वैज्ञानिक एरीज…हिमालयी क्षेत्रों में वाहनों की अत्यधिक वृद्धि से वायुमंडल को बहुत नुकसान पहुंचा है,इसका असर हिमालई क्षेत्रों में देखने को मिला है। हिमालय में दो वर्ष पूर्व हुए शोध में 30 फ़ीसदी कार्बन की मात्रा बढ़ गई थी । हिमालयी क्षेत्रों का तापमान में असमय वृद्धि हुई है,जिसका असर यहां की जलवायु उपज पर्यटन व सामाजिक क्षेत्र में पड़ा है । यदि समय रहते कार्बनिक गैसों की बढ़ती रफ्तार में अंकुश नहीं लगाया गया तो भविष्य में मौसम की भारी दुश्वारियां झेलनी पड़ सकती हैं।

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