चुनाव

निकाय चुनाव:सोशल मीडिया का बढ़ता असर और मीडिया मानवशास्त्र का दृष्टिकोण:कल्चरल एम्बेसडर अभिजीत सिंह देवड़ी ईशु 

सोशल मीडिया के बढ़ते असर को लेकर कल्चरल एम्बेसडर अभिजीत सिंह देवड़ी ईशु का कहना है किमुझे याद आते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मन की बात में बोले गए शब्द सोशल मीडिया ने लोकतंत्र को और सशक्त किया है। यह हमें जनता से जोड़ने और उनकी समस्याओं को सुनने का एक मजबूत माध्यम प्रदान करता है। सोशल मीडिया ने आज राजनीति के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है।जहां पहले चुनाव प्रचार का माध्यम पोस्टर, रैलियां,और जनसभाएं होती थीं, वहीं अब फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म सबसे बड़े प्रचार तंत्र बन गए हैं। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में,जहां भौगोलिक बाधाओं के कारण पारंपरिक प्रचार सीमित रहता था, सोशल मीडिया ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और प्रभावी बना दिया है।यहाँ तक कि अब तो राजनैतिक दलों के अंदर ही एक सोशल मीडिया विंग खासतौर पर बनाई जा रही है Iमीडिया मानवशास्त्र के अनुसार, मीडिया केवल सूचना का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों के विचार, संस्कृति, और राजनीतिक रुझानों को प्रभावित करता है।  उत्तराखंड जैसे राज्यों में सोशल मीडिया की भूमिका को मीडिया मानवशास्त्र के तीन मुख्य पहलुओं में देखा जा सकता है।संस्कृति का डिजिटलीकरण: सोशल मीडिया ने राजनीतिक संवाद को स्थानीय संस्कृति और प्रतीकों से जोड़ दिया है। उदाहरण के लिए, गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा में प्रचार सामग्री का प्रसार युवाओं और ग्रामीणों के साथ जुड़ने का एक प्रभावी तरीका बन गया है।आगे पढ़ें समूह पहचान और सामूहिकता……..

समूह पहचान और सामूहिकता।सोशल मीडिया ने पहाड़ी समुदायों के लिए एक साझा मंच बनाया है। मीडिया मानवशास्त्र इस बात पर जोर देता है कि कैसे डिजिटल मीडिया एक साझा पहचान बनाने और स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय और वैश्विक मंच पर उठाने में मदद करता है। उदाहरण के तौर पर – उत्तराखंड के पर्यावरण संगठनों ने सोशल मीडिया का उपयोग “चार धाम प्रोजेक्ट” और “जोशीमठ भू-धंसाव” जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए किया।नए संचार माध्यम और शक्ति संरचना: मीडिया मानवशास्त्र के दृष्टिकोण से, सोशल मीडिया ने सत्ता संरचना में बदलाव लाया है। अब राजनीतिक पार्टियां और नेता जनता से सीधे संवाद कर सकते हैं, जिससे मीडिया बिचौलियों की भूमिका कम हो गई है।आगे पढ़ें चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका……..

चुनावों में सोशल मीडिया की भूमिका।सोशल मीडिया ने न केवल राजनीतिक पार्टियों को अपने विचारों और घोषणाओं को जनता तक पहुँचाने में मदद की है, बल्कि आम जनता को भी अपनी राय व्यक्त करने का मंच प्रदान किया है। चुनावी रणनीति में सोशल मीडिया के निम्नलिखित योगदान हैं।सूचना का तेजी से प्रसार: सोशल मीडिया के जरिए चुनावी घोषणाएं, विकास योजनाएं, और नेता अपनी विचारधारा पलभर में लाखों लोगों तक पहुँचा सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी भाजपा के आईटी सेल प्रमुख श्री अमित मालवीय जी  ने कहा था, “सोशल मीडिया अब वोटर्स को जोड़ने का सबसे शक्तिशाली माध्यम है,और यह हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा रहा है। युवाओं की भागीदारी: सोशल मीडिया ने विशेष रूप से युवाओं को राजनीति से जोड़ा है। युवा मतदाता फेसबुक लाइव, ट्विटर ट्रेंड, और इंस्टाग्राम रील्स के माध्यम से अपने नेताओं से जुड़ रहे हैं। दो-तरफ़ा संवाद: सोशल मीडिया के जरिए राजनेता और जनता के बीच संवाद आसान हो गया है।  नेताओं और जनता के बीच संवाद का सीधा साधन बन चुका है सोशल मीडिया। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत जी ने पिछले चुनावों के दौरान फेसबुक लाइव के माध्यम से जनता से कहा था, “मेरा हर वादा आपके बीच पारदर्शी है, और सोशल मीडिया हमें जनता से सीधे जुड़ने का सबसे बड़ा अवसर देता है।जागरूकता अभियान: मतदाता जागरूकता अभियान सोशल मीडिया पर तेजी से फैलाए जा सकते हैं, जिससे मतदान प्रतिशत बढ़ाने में मदद मिलती है।आगे पढ़ें उत्तराखंड में स्थानीय चुनाव और सोशल मीडिया की भूमिका……

यह भी पढ़ें 👉  नैनीताल पुलिस का ऑपरेशन रोमियो:गिरफ्त में आये 147 मनचले और हुड़दंगी

उत्तराखंड में स्थानीय चुनाव और सोशल मीडिया की भूमिका।उत्तराखंड के स्थानीय चुनावों में सोशल मीडिया एक अहम भूमिका निभाने जा रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं।भौगोलिक बाधाओं का समाधान: पहाड़ी क्षेत्रों में, जहां गांवों तक पहुँच पाना कठिन है, सोशल मीडिया एक डिजिटल पुल का काम करता है। आगामी पंचायत और नगर निकाय चुनावों के दौरान, प्रत्याशी व दल/ समर्थकाल फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिए अपने संदेश पहुंचाए। नए मतदाताओं को जोड़ना: उत्तराखंड के युवा मतदाता सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं। स्थानीय चुनावों में यह समूह निर्णायक साबित हो सकता I एक युवा नेता ने कहा, “हमने सोशल मीडिया पर जल संकट और रोजगार जैसे स्थानीय मुद्दों को उठाया, जिससे हमारा समर्थन ग्रामीण क्षेत्रों में भी बढ़ा।स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना: सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय मुद्दों, जैसे सड़क, पानी, बिजली, और रोजगार को प्राथमिकता दी जा रही है। कम लागत, बड़ा प्रभाव: सोशल मीडिया प्रचार की लागत कम होती है, जो छोटे उम्मीदवारों के लिए इसे अधिक प्रभावी बनाता है।आगे पढ़ें चुनौतियाँ और समाधान…

चुनौतियाँ और समाधान।हालांकि सोशल मीडिया के उपयोग में कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे फेक न्यूज़, दुष्प्रचार और डेटा गोपनीयता । लेकिन इसके समाधान के लिए जागरूकता और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की सख्त नीतियों की जरूरत है। उत्तराखंड के स्थानीय चुनावों में भी फर्जी संदेशों और भ्रामक प्रचार के जरिए जनता को गुमराह करने के प्रयास हो सकते हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए चुनाव आयोग को सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी रखनी होगी और फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के लिए सख्त निर्देशकों की आवश्यकता है I साथ ही, जनजागरूकता अभियानों के माध्यम से मतदाताओं को डिजिटल मीडिया का सही उपयोग सिखाना आवश्यक है।आगे पढ़ें निष्कर्ष….

निष्कर्ष।सोशल मीडिया ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पारदर्शी और प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उत्तराखंड के स्थानीय चुनावों में सोशल मीडिया की भूमिका आने वाले समय में और भी अधिक बढ़ेगी। यह केवल प्रचार का साधन नहीं रहेगा, बल्कि जनता और नेताओं के बीच संवाद का सबसे बड़ा मंच बन जाएगा। मीडिया मानवशास्त्र इस बात पर प्रकाश डालता है कि सोशल मीडिया ने उत्तराखंड के चुनावी प्रचार को केवल तकनीकी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भों में भी बदल दिया है। यह न केवल राजनीति को लोकतांत्रिक बनाने का माध्यम है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित और प्रचारित करने का भी एक साधन है।

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad

Quis autem vel eum iure reprehenderit qui in ea voluptate velit esse quam nihil molestiae consequatur, vel illum qui dolorem?

Temporibus autem quibusdam et aut officiis debitis aut rerum necessitatibus saepe eveniet.

About

Kumaun vani (कुमाऊं वाणी) देवभूमि उत्तराखंड के कुमांउ व गढ़वाल के गांव-गधेरों की समस्याओ, ताजा खबरों व विलुप्त हो रही कुमांउनी व गढ़वाली संस्कृति को उजागर करने का एकमात्र डिजिटल माध्यम है। अतः आप भी अपने विचार व अपने क्षेत्र की समस्याओं व समाचारों को प्रकाशित करने के लिए हमसे [email protected] तथा दूरसंचार व व्हाट्सएप नम्बर 8171371321 पर सम्पर्क कर सकते है।

(खबरों की विश्वसनीयता ही हमारी पहचान है)

संपादक –

नाम: हिमानी बोहरा
पता: मझेड़ा, नैनीताल, उत्तराखण्ड
दूरभाष: +91 81713 71321
ईमेल: [email protected]

© 2022, Kumaun Vani (कुमाऊँ वाणी)
Get latest Uttarakhand News updates in Hindi
Website Developed & Maintained by Naresh Singh Rana
(⌐■_■) Call/WhatsApp 7456891860

To Top

You cannot copy content of this page