सूरज पूरब बैं उगंछीं,पूरब बैं उग रौ,सूरज पश्चिम में छिपछीं,पश्चिम में छिपण रौं,सब बखत कैं दोष दींण रई,आपण दोष कैं छिपौण रई,आपण बात सब मनूंण रयीं,बखता यौस आब के हैगो…सबैं कूंण लागि रयीं ….बखत बदई गो…बखत बदई गो……दिन रात लैं उसैं छन,उसैं सूरज ज्यूनी छन,म्हैण बार लै उसै छन,धरती अकाश उसै छन,रवा्ट भात लै उसै छन,उसै पिसीं -चावौ छन,पैं किलैं मेलजोल कम हैगो,प्रेम भाव लैं कहां गो,सबैं कूंण लागि रयीं …बखत बदई गो…..बखत बदई गो,…..ईज बौज्यू छन मम्मी पापा,अंकल आंटी,काखी काका,ठुलईज ठुलबौज्यू ताऊ ताई,आपण पराई ब्याहरक भाई,जन्म आजलै ईजै दिछौ,पालन पोषण घरमें हूंछौ,नाम बदई काम निं बदई,कैंलैं आपण फाम निं बदई,मानव मानवक काव हैरौ,दै पौहर आब बिराऊ हैरौ,क्वें निं सुणन कैंकि हो,जसै बेई छन आज लै भो,फरक हांमरि सोचं में हैं गो,सबैं कूंण लागि रयीं …बखत बदई गो…….बखत बदई गो,….आपण मनौक बखत कैं दोष,हांम बदई बखत हैं रोष,बदई गई आचार विचार,बदई गई आब संस्कार,मन में पसिं गो आब दौंकार,बदई गई मनकिं विचार,स्वार्थ, लालच आब बढ़ी गो,रिश्तों हैंबे ठुल पैंस हैगो,मानवता आब स्वैंणा हैगो,सबैं कूंण लागि रयीं …बखत बदई गो…….बखत बदई गो,….. रचनाकार- भुवन बिष्ट मौना, (रानीखेत) उत्तराखंड
भुवन बिष्ट की कुमाउनी रचना: “बखत बदई गो”
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