मनु पंवार
उम्र ही क्या थी उसकी ! महज 19 साल। आंगनबाड़ी में बतौर सहायिका काम करने वाली एक मां, गांव में मजदूरी करके गुजर-बसर कर रहे एक पिता ने किसी तरह अपनी बिटिया को पौड़ी में पढ़ाया-लिखाया। बिटिया मेधावी थी। उसके सहपाठी बताते हैं कि वह बहुत होशियार थी। उसके पास बहुत सपने थे। कुछ बनने के, कुछ करने के। लेकिन कष्टों और अभावों वाली पारिवारिक पृष्ठभूमि उसके सपनों के आड़े आती रही।
लिहाज़ा अंकिता ने 12वीं पास करने के बाद जॉब करने की सोची ताकि कुछ पैसे कमाकर मुफलिसी में जी रहे अपने परिवार की मदद कर सके। वो हाड़-तोड़ मेहनत कर रहे ग़रीब मां-पिता के दुखों में हाथ बंटाना चाहती थी। अपने छोटे भाई को कुछ बनते हुए देखना चाहती थी। बीमार पिता का अच्छा इलाज करवाना चाहती थी। उसके सपनों के सामने जिम्मेदारियों का पहाड़ खड़ा था। इसीलिए पहाड़ की इस बिटिया ने अपने जवान सपनों को कुर्बान कर दिया।
वह महज 19 साल की थी, लेकिन अभावों में पल-बढ़कर बहुत सयानी हो चुकी थी। वो आगे की पढ़ाई जारी रखने के बजाय नौकरी खोजने लगी। पिछले महीने यानी 28 अगस्त की ही बात है, जब किसी के जरिये उसे एक रिजॉर्ट में रिसेप्शनिष्ट की नौकरी मिली। वो रिजॉर्ट बीजेपी के एक नेता का है जिसे पहले राज्य सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा हासिल था। अंकिता को बिल्कुल भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि वह जाने-अनजाने आदमखोरों की मांद में घुस आई है।
पहाड़ की इस बिटिया ने अपने सपनों के साथ भले ही समझौता कर लिया था, लेकिन आत्मसम्मान और स्वाभिमान के साथ समझौता उसे मंजूर नहीं था। वह उन आदमखोरों के सामने डटी रही। रिजॉर्ट के मालिक बीजेपी नेता का बेटा पुलकित उस पर कस्टमरों को ‘एक्स्ट्रा सर्विस’ देने का दबाव डालता रहा, लेकिन अंकिता ने उन आदमखोरों के सामने सरेंडर नहीं किया। हालांकि इसकी उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।
अब देख रहा हूं कि कुछ लोग इस बात पर ही गदगद हैं कि सरकार ने बुलडोजर के जरिये उस रिजॉर्ट की खिड़कियों के शीशे तोड़ दिए और उसका गेट उखाड़ दिया। अबे धिक्कार है तुम पर ! बंद करो ये जयकारे !
इस बात का जवाब तो मांगो कि उस बिटिया का गरीब और बीमार पिता 5 दिन तक अपनी गुमशुदा बेटी के लिए दर-दर क्यों भटकता रहा? इसका जवाब तो मांगो कि इन ताकतवर लोगों से हमारी अंकिताएं कैसे बचेंगी?