नैनीताल।जैव विविधता से भरपूर राज्य उत्तराखंड ने दुनिया को बिच्छू घास नामक एक अद्भुत आश्चर्यजनक घास का उपहार दिया है। इसका उपयोग हर्बल चाय से लेकर सैंडल और जैकेट तक कई प्रकार के उत्पाद तैयार करने में किया जा रहा है।गढ़वाल में इसे कंडाली और कुमाउं क्षेत्र में सिसुण नाम से जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम अर्टिका डियोइका है और दुनिया भर में इसकी 250 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जो अपने गर्म गुणों के लिए जानी जाती हैं।छायादार क्षेत्रों में 4000 से 9000 फीट की ऊंचाई पर उगने वाली बिच्छू घास उत्तराखंड की हरी-भरी पहाड़ियों में फलती-फूलती है। इसके पौधे लगभग चार से छह फीट ऊंचे होते हैं और जुलाई-अगस्त में फूल खिलते हैं। इस घास की गर्म प्रकृति इसे विभिन्न पाक और औषधीय उपयोगों के लिए उपयुक्त बनाती है।आगे पढ़ें….
औषधीय गुणों से भरपूर है बिच्छू घास,-सिसुण।बिच्छू घास खनिज, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, सोडियम, कैल्शियम, आयरन और विटामिन से भरपूर है, जिससे इसे चिकित्सा के क्षेत्र में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इसमें मौजूद हिस्टामाइन जैसे पदार्थ के कारण इसे सूजन वाले क्षेत्रों पर लगाने से सूजन कम हो सकती है। साथ ही पाचन प्रकिया में भी इसका इडतेमाल किया जाता है।तथा पीलिया और मलेरिया रोगों से में यह उपयोगी होता है।आगे पढ़ें….
कुटीर उद्योग के लिए उज्जवल भविष्य की उम्मीद।बिच्छू घास की कोमल पत्तियों का उपयोग एक स्वादिष्ट स्थानीय व्यंजन तैयार करने के लिए किया जाता है जिसे “कंडाली-झंगोरा” कहा जाता है, यह पहाड़ी चावल या “झंगोरा” से बना व्यंजन है। इसके अलावा, घास का उपयोग ग्रीन टी के उत्पादन के लिए किया जाता है। इसकी लोकप्रियता अब धीरे धीरे भारत ही नही बल्कि विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ने लगी है। बहुमुखी बिच्छू घास वास्तव में प्रदेश की प्राकृतिक संपदा और सतत विकास की क्षमता का प्रतीक बन गई है। औषधीय चमत्कारों से लेकर गैस्ट्रोनॉमिक प्रसन्नता और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों तक, यह आश्चर्यजनक घास विभिन्न उद्योगों में अपनी पहचान बना रही है, जिससे कुटीर उद्योग के लिए उज्जवल भविष्य की उम्मीदें जगी हैं।
















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