स्वाति न्याल। उत्तराखंड का हर पल, हर कोने में कुछ खास और अद्वितीय होता है। वही खासियत दिखती है, जब बात आती है इस राज्य के लोकपर्वों की,जिनमें धार्मिक आस्था और संस्कृति का खास महत्व होता है। इसी खास विशेषता के साथ आता है उत्तराखंड का एक और महत्वपूर्ण पर्व – सोरघाटी का हिलजात्रा पर्व, जिसमें छिपी है एक 500 वर्ष पुरानी शौर्य गाथा और लखिया भूतों का आदर्श दर्शाया जाता है।उत्तराखंड को ‘देवभूमि’ या ‘भगवानों की धरती’ कहा जाता है, और यहां की संस्कृति उसकी शान है। इस राज्य में हर मौसम, प्राकृतिक सौंदर्य, और धार्मिक आस्था को मान्यता मिलती है।आगे पढ़ें…..
सोरघाटी का हिलजात्रा:सोरघाटी क्षेत्र का हिलजात्रा पर्व एक अद्वितीय अनुभव है, जो उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक आयोजनों में से एक है। इस पर्व में लोग मुखौटों के पीछे छिपी 500 वर्ष पुरानी शौर्य गाथा को जीवंत करते हैं।आगे पढ़ें….
कुमौड़ गांव से शुरुआत:हिलजात्रा पर्व का आगमन कुमौड़ गांव के इतिहास से जुड़ा है, जो लगभग 500 साल पहले हुआ था। कहा जाता है कि इस गांव के चार महर भाई नेपाल में हर साल आयोजित होने वाली इंद्रजात्रा में शामिल होने गए थे। महर भाईयों की बहादुरी ने नेपाल नरेश को प्रसन्न किया, और उन्होंने ये मुखौटे इनाम में दिए, जिन्हें भगवान शिव के गण के रूप में माना जाता है। इसके बाद से ही नेपाल की ही तर्ज पर यह पर्व सोरघाटी पिथौरागढ़ में भी हिलजात्रा रूप में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।आगे पढ़ें…..
मुखौटों का महत्व:मुखौटे या “मुखौटा” विभिन्न चरित्रों को दर्शाने का साधन नहीं है, बल्कि यह एक पूरी दुनिया की कहानी है। सोरघाटी का हिलजात्रा पर्व मुखौटों के माध्यम से प्राचीन कथाओं को जीवंत करता है, जिसमें भगवान, देवताओं, पौराणिक किस्से, और स्थानीय किस्से शामिल होते हैं।आगे पढ़ें……
लखिया भूत के आगमन:हिलजात्रा पर्व की विशेषता यह है कि इसमें लखिया भूतों का आगमन होता है, जिन्हें भगवान शिव के प्रमुख गण, वीरभद्र, का अवतार माना जाता है। लखिया भूत, अपनी डरावनी आकृति के बावजूद, मैदान में उतरकर दर्शकों को रोमांचित करते हैं। इस पर्व में बैल, हिरण, चीतल, और लखिया भूत जैसे दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर दर्शकों को रोमांचित करते हैं। इसके अलावा, पहाड़ के कृषि प्रेम को भी दर्शाते हैं। सोरघाटी का हिलजात्रा पर्व लोगों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देने के साथ-साथ अगले वर्ष आने का वादा कर चला जाता है।आगे पढ़ें…...
इतिहास का संजीवनी दर्पण:सोरघाटी का हिलजात्रा पर्व उत्तराखंड के इतिहास की एक अमूल्य धरोहर का प्रतीक है। यह बताता है कि इस प्राचीन प्रदेश की संस्कृति और परंपराएं कैसे मॉडर्न युग में भी अपनी मूलों को बरकरार रखती हैं। हालांकि, इतिहास की संरक्षण और संवर्धन की दिशा में प्रयास हो रहे हैं। सोरघाटी का हिलजात्रा पर्व जैसे आयोजन न केवल मनोरंजन प्रदान करते हैं, बल्कि यात्रियों को इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के बारे में शिक्षा भी देते हैं। ये प्रयास आने वाली पीढ़ियों के लिए उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।आगे पढ़ें……
समय और परंपरा का नृत्य:सोरघाटी का हिलजात्रा पर्व सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह समय की यात्रा है, आज का जश्न है, और भविष्य का पुल है। यह हमें याद दिलाता है कि संस्कृति स्थायी नहीं होती, बल्कि यह अपनी जड़ों को पकड़ कर रहती है, जबकि आधुनिकता की ओर बढ़ती है। तो, जब आप अगली बार उत्तराखंड के दिल में हों, तो सोरघाटी के हिलजात्रा पर्व के जादू को देखने का सुनहरा अवसर मिले और हर नृत्य कदम और प्रत्येक मुखौटे के पीछे छिपी इतिहास को देखें। स्वाति नयाल।